रात भर हम तो करवट बदलते रहे
दिल के अरमान अश्कों में ढ़लते रहे ।
फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
हम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।
धूप में पांव जल न जायें कहीं
घनी अमराइयों में ही चलते रहे ।
बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
शब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।
मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।
जब दुआ मांगना तो यही मांगना
सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे ।
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
जब कमाने लगा तो अलग हो गया
बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
बहुत बढ़िया सामयिक रचना है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteजब कमाने लगा तो अलग हो गया
बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
ReplyDeleteरोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
जमाना भी यही है .. सबकुछ होते हुए खुशियां नहीं हैं !!
ReplyDeleteजब कमाने लगा तो अलग हो गया
ReplyDeleteबूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
-उफ्फ!! दिल को छू गये...वाह!
कांटे भी बन जायेंगे फूल , धुप में पाँव रखो तो ज़रा ....
ReplyDeleteफूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
ReplyDeleteहम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।
बहुत ही सुन्दर भाव; गहराई के साथ
बेहतरीन
रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना... बधाई
ReplyDeleteजब दुआ मांगना तो यही मांगना
ReplyDeleteसबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे ।
..
जब कमाने लगा तो अलग हो गया
बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जीवन की सच्चाई को बयां करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
ReplyDeleteहम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।
मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।
आज की सच्चाई को बयाँ करती रचना। बहुत खूब।
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
ReplyDeleteरोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
जब कमाने लगा तो अलग हो गया
बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
मन की बात सटीक शब्दों में कह दी है.....बधाई
बहुत ही सटीक और दिल के करीब से गुजरती रचना.
ReplyDeleteरामराम.
जब कमाने लगा तो अलग हो गया
ReplyDeleteबूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
वाह वाह लाजवाब । बहुत बहुत बधाई
कमाल के एहसास हैं पूरी रचना में ......... हर शेर दिल को छूता है ............
ReplyDeleteफूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
हम तो कांटों से बच के निकलते रहे..
कमाल का शेर है ......... फूल ही अक्सर दर्द देते हैं .......
जब दुआ मांगना तो यही मांगना
सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे...
आमीन ....... आपकी दुवाओं में असर हो .........
"बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
ReplyDeleteशब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।"
बहुत खूबसूरत एहसास है , बधाई !!
भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
ReplyDeleteसुंदर रचना....
bahut hi sundar rachna..
ReplyDeletehar ek ki kahani hai yahi..
aakhiri ki lines bahut hi pyari hain..
"बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
ReplyDeleteशब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।"
बहुत सुन्दर.
" aap blog par likhate rahe aour
ReplyDeleteham kese padhhne se vanchit rahe?"
lekin ab esa nahi hoga, bahut khoob likhate he aap, ab to aate rahna padegaa, filhaal to aapke blog ko abhi padhhna shesh he..poora padhhne ke baad aataa hu.
bahut hi umda likhte hai aap...sach!!
ReplyDeleteजब कमाने लगा तो अलग हो गया
ReplyDeleteबूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
वाह क्या बात .....बहुत सुंदर ...अच्छा लगा
बधाई
ब्लॉग पर आने का बहुत-बहुत शुक्रिया...सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteआप की गजल पढ़ी और जी खुश हो गया. कुछ तो गजल के कंटेंट और कुछ आपकी मेहनत, दोनों ही नजर आते हैं. लेकिन मित्र, थोडा गजल के व्याकरण और शास्त्रीयता पर भी ध्यान दे डालें तो मामला बेहतर हो सकता है. मैं भी आपके पड़ोस, गोरखपुर से हूँ. आप मेरे ब्लॉग तक आये, अपनी पसंद ज़ाहिर की, कमेन्ट दिया, शुक्रिया. मुझे देखिये, आपके ब्लॉग पर आपको ही बजाय तारीफ के कमियां बता रहा हूँ. अपने अपने मेटल की बात है. आप महान हैं और मैं?
ReplyDeleteसर्वत जी मेरे ब्लाग पर आने और सुझाव देने का शुक्रिया । मुझे खुशी है कि आपने बारीकी से देखकर अपनत्व के साथ गजल के व्याकरण और शास्त्रीयता पर भी ध्यान देने का सुझाव दिया , जिसका मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं , लेकिन कहां कहां सुधार (ध्यान ) करना है ये बताते तो मुझे मदद मिलती ।
ReplyDeleteरचनाएं भी सुन्दर, ब्लॉग भी सुन्दर .
ReplyDeleteशुभ कामनाएं .. कभी मेरे ब्लॉग पर नज़र करें ..शेष फिर
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
ReplyDeleteरोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
बहुत ही सुन्दर अहसास पिरोते हुये लाजवाब शब्द रचना बधाई ।
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
ReplyDeleteमेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।
बहुत बहुत पसंद आया यह शेर सच है आज कल का यही .सुन्दर पसंद आई यह गजल शुक्रिया
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteकविता है या जीवन पटल का अकाट्य सत्य ???
ReplyDeleteविलक्षण !!!
मन को छू लेने वाली बहुत भावभीनी अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteजब कमाने लगा तो अलग हो गया
ReplyDeleteबूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
वाह!हाल की आपकी एक सर्श्रेष्ट रचना कह सकता हूँ अजय जी .
जब कमाने लगा तो .....अलग हो ,गया माँ बाप ........
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा .....जब भी कोई अपनी बीती लिखता है
.....तो ....दिल को बरवस ही छू जाता है
हम सभी लोग ......मुखौटा पहन कर खेलते हैं
अपने चोर से डर लगता है जो .......
हम सभी .......बहुत चापलूस हैं
छपने के लिए .....सफेद चादर ओढ़ते हैं
yahi hota hai jab apno se umeede badhti hai
ReplyDeleteyahi hota hai jab apno ki berukhiya milti hai
ajay ji ek ek shair bahut bahut umda hai...badhayi.
मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
ReplyDeleteमेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।
राज उनकी तरक्की का इतना सा है
रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
These lines are best
बात करनी बहुत थी मगर जब मिले
ReplyDeleteशब्द निकले नहीं होंठ हिलते रहे ......
वाह .......गज़ब का शे'र ......!!
hrek sher lajvab .
ReplyDeletebhut achhi abhivykti
एक बेहतरीन ग़ज़ल अजय जी। सर्वत साब का इशारा ठीक है। लेकिन मेरी समझ से बस एक शेर बहर से बाहर जा रहा और वो है तीसरा शेर...
ReplyDeleteमुझपे गैरों का हर वार खाली गया..
ReplyDeleteमेरे अपने ही मुझे छलते रहे...।।
आज की सबसे बड़ी हकीकत है..
धन्यवाद गौतम राजरिशी जी ,आगे से ध्यान रखुंगा । वैसे मैं जब देखता हूं कि लय नही टूट रही है तो उसे लिख देता हूं ।
ReplyDeleteजब कमाने लगा तो अलग हो गया
ReplyDeleteबूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
achchha laga
nice
ReplyDeletesach aaankh nam ho gai..
ReplyDeleteati sunadr
बढ़िया रचना प्रस्तुति .बधाई
ReplyDeleteसर , आपकी यह गजल भी बहुत अच्छी लगी । नव वर्ष की शुभकामनाएं ,अग्रिम रूप में ...
ReplyDeleteBahut Badia Sher aur Gazal .Badhai....
ReplyDeleteसुदर अति सुन्दर
ReplyDeletebahut hi badiya hai .
ReplyDeleteBahut sahee likhate ho..Bhai..!
ReplyDeletebehtareen kavitayen hain. aage bhi aise hi likhte rahen. dhanywad
ReplyDeletenilabh verma
http://dharmsansar.blogspot.com
http://ithindi.blogspot.com
mein soch rha tha kis pankti ki zada tareef karun parantu yeh asambhav hai....poori kavita vismit karte hai aur do-char karati hai un satyon se jin se hum bhaagte firte hain har pal....bhut badhiya ajay ji...!!
ReplyDeleteसबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे.
ReplyDeleteAjay ji lajawab hain aapki ye kavita...iske herline me ek ehsas chhupa hi.badhai ho......
ReplyDeletevery nice kaafi accha likha hai aaphe...and thanks for apprication
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