Saturday, December 19, 2009

एहसास

रात भर हम तो करवट बदलते रहे
दिल के अरमान अश्कों में ढ़लते रहे ।

फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
हम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।

धूप में पांव जल न जायें कहीं
घनी अमराइयों में ही चलते रहे ।

बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
शब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।

मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।

जब दुआ मांगना तो यही मांगना
सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे ।

राज उनकी तरक्की का इतना सा है
रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।

जब कमाने लगा तो अलग हो गया
बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

54 comments:

  1. बहुत बढ़िया सामयिक रचना है।बधाई स्वीकारें।

    जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

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  2. राज उनकी तरक्की का इतना सा है
    रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com

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  3. जमाना भी यही है .. सबकुछ होते हुए खुशियां नहीं हैं !!

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  4. जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

    -उफ्फ!! दिल को छू गये...वाह!

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  5. कांटे भी बन जायेंगे फूल , धुप में पाँव रखो तो ज़रा ....

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  6. फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
    हम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।

    बहुत ही सुन्दर भाव; गहराई के साथ
    बेहतरीन

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  7. बहुत गहरी रचना... बधाई

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  8. जब दुआ मांगना तो यही मांगना
    सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे ।
    ..

    जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

    आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जीवन की सच्चाई को बयां करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  9. फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
    हम तो कांटों से बच के निकलते रहे ।

    मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
    मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।

    आज की सच्चाई को बयाँ करती रचना। बहुत खूब।

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  10. राज उनकी तरक्की का इतना सा है
    रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।

    जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

    मन की बात सटीक शब्दों में कह दी है.....बधाई

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  11. बहुत ही सटीक और दिल के करीब से गुजरती रचना.

    रामराम.

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  12. जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे

    राज उनकी तरक्की का इतना सा है
    रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।
    वाह वाह लाजवाब । बहुत बहुत बधाई

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  13. कमाल के एहसास हैं पूरी रचना में ......... हर शेर दिल को छूता है ............

    फूल घायल करेंगे नहीं इल्म था
    हम तो कांटों से बच के निकलते रहे..

    कमाल का शेर है ......... फूल ही अक्सर दर्द देते हैं .......

    जब दुआ मांगना तो यही मांगना
    सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे...

    आमीन ....... आपकी दुवाओं में असर हो .........

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  14. "बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
    शब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।"

    बहुत खूबसूरत एहसास है , बधाई !!

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  15. भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
    सुंदर रचना....

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  16. bahut hi sundar rachna..
    har ek ki kahani hai yahi..
    aakhiri ki lines bahut hi pyari hain..

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  17. "बात करनी बहुत थी ,मगर जब मिले
    शब्द निकले नही होंठ हिलते रहे ।"
    बहुत सुन्दर.

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  18. " aap blog par likhate rahe aour
    ham kese padhhne se vanchit rahe?"
    lekin ab esa nahi hoga, bahut khoob likhate he aap, ab to aate rahna padegaa, filhaal to aapke blog ko abhi padhhna shesh he..poora padhhne ke baad aataa hu.

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  19. bahut hi umda likhte hai aap...sach!!

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  20. जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।

    वाह क्या बात .....बहुत सुंदर ...अच्छा लगा

    बधाई

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  21. ब्लॉग पर आने का बहुत-बहुत शुक्रिया...सुंदर ग़ज़ल

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  22. आप की गजल पढ़ी और जी खुश हो गया. कुछ तो गजल के कंटेंट और कुछ आपकी मेहनत, दोनों ही नजर आते हैं. लेकिन मित्र, थोडा गजल के व्याकरण और शास्त्रीयता पर भी ध्यान दे डालें तो मामला बेहतर हो सकता है. मैं भी आपके पड़ोस, गोरखपुर से हूँ. आप मेरे ब्लॉग तक आये, अपनी पसंद ज़ाहिर की, कमेन्ट दिया, शुक्रिया. मुझे देखिये, आपके ब्लॉग पर आपको ही बजाय तारीफ के कमियां बता रहा हूँ. अपने अपने मेटल की बात है. आप महान हैं और मैं?

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  23. सर्वत जी मेरे ब्लाग पर आने और सुझाव देने का शुक्रिया । मुझे खुशी है कि आपने बारीकी से देखकर अपनत्व के साथ गजल के व्याकरण और शास्त्रीयता पर भी ध्यान देने का सुझाव दिया , जिसका मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं , लेकिन कहां कहां सुधार (ध्यान ) करना है ये बताते तो मुझे मदद मिलती ।

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  24. रचनाएं भी सुन्दर, ब्लॉग भी सुन्दर .
    शुभ कामनाएं .. कभी मेरे ब्लॉग पर नज़र करें ..शेष फिर

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  25. राज उनकी तरक्की का इतना सा है
    रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।

    बहुत ही सुन्‍दर अहसास पिरोते हुये लाजवाब शब्‍द रचना बधाई ।

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  26. बहुत ही बेहतरीन रचना
    बहुत बहुत आभार

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  27. मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
    मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।

    बहुत बहुत पसंद आया यह शेर सच है आज कल का यही .सुन्दर पसंद आई यह गजल शुक्रिया

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  28. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  29. कविता है या जीवन पटल का अकाट्य सत्य ???

    विलक्षण !!!

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  30. मन को छू लेने वाली बहुत भावभीनी अभिव्‍यक्ति है।

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  31. जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
    वाह!हाल की आपकी एक सर्श्रेष्ट रचना कह सकता हूँ अजय जी .

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  32. जब कमाने लगा तो .....अलग हो ,गया माँ बाप ........
    बहुत अच्छा लिखा .....जब भी कोई अपनी बीती लिखता है
    .....तो ....दिल को बरवस ही छू जाता है
    हम सभी लोग ......मुखौटा पहन कर खेलते हैं
    अपने चोर से डर लगता है जो .......
    हम सभी .......बहुत चापलूस हैं
    छपने के लिए .....सफेद चादर ओढ़ते हैं

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  33. yahi hota hai jab apno se umeede badhti hai
    yahi hota hai jab apno ki berukhiya milti hai

    ajay ji ek ek shair bahut bahut umda hai...badhayi.

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  34. मुझपे गैरों का हर वार खाली गया
    मेरे अपने मुझे रोज छलते रहे ।

    राज उनकी तरक्की का इतना सा है
    रोज चेहरे पे चेहरे बदलते रहे ।

    These lines are best

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  35. बात करनी बहुत थी मगर जब मिले
    शब्द निकले नहीं होंठ हिलते रहे ......

    वाह .......गज़ब का शे'र ......!!

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  36. एक बेहतरीन ग़ज़ल अजय जी। सर्वत साब का इशारा ठीक है। लेकिन मेरी समझ से बस एक शेर बहर से बाहर जा रहा और वो है तीसरा शेर...

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  37. मुझपे गैरों का हर वार खाली गया..
    मेरे अपने ही मुझे छलते रहे...।।

    आज की सबसे बड़ी हकीकत है..

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  38. धन्यवाद गौतम राजरिशी जी ,आगे से ध्यान रखुंगा । वैसे मैं जब देखता हूं कि लय नही टूट रही है तो उसे लिख देता हूं ।

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  39. जब कमाने लगा तो अलग हो गया
    बूढ़े माता पिता हाथ मलते रहे ।
    achchha laga

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  40. sach aaankh nam ho gai..
    ati sunadr

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  41. बढ़िया रचना प्रस्तुति .बधाई

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  42. सर , आपकी यह गजल भी बहुत अच्छी लगी । नव वर्ष की शुभकामनाएं ,अग्रिम रूप में ...

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  43. Bahut Badia Sher aur Gazal .Badhai....

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  44. सुदर अति सुन्दर

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  45. behtareen kavitayen hain. aage bhi aise hi likhte rahen. dhanywad
    nilabh verma
    http://dharmsansar.blogspot.com
    http://ithindi.blogspot.com

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  46. mein soch rha tha kis pankti ki zada tareef karun parantu yeh asambhav hai....poori kavita vismit karte hai aur do-char karati hai un satyon se jin se hum bhaagte firte hain har pal....bhut badhiya ajay ji...!!

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  47. सबके चूल्हे सुबह शाम जलते रहे.

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  48. Ajay ji lajawab hain aapki ye kavita...iske herline me ek ehsas chhupa hi.badhai ho......

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  49. very nice kaafi accha likha hai aaphe...and thanks for apprication

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