सर्दी में तुम आ जाओ लेकर कुछ गरमी ।
आँखों में कुछ शर्म,नमक जितनी बेशर्मी ॥
लाना वो मुस्कान मुझे व्याकुल जो कर दे ।
वही महकता बदन वही हाथों की नरमी ॥
इक दूजे पर अपना सारा प्यार लुटा दें ।
कभी तनिक बिंदास, कभी कुछ सहमी सहमी ॥
चलो आज आओ मेरा अन्तर्मन छू लो ।
छूने में कुछ कोमलता हो कुछ बेरहमी ॥
लब खोलो , कुछ बोलो मुझसे आँख मिलाकर ।
पिघला डालो बर्फ , भरो रिश्तों में गरमी ॥
इस सर्दी में भी गज़ब की गर्मी है....!!!!
ReplyDeleteVery nice. In this chilling cold, how much one need the warmth of love and relation, you showed it very well, may the warmth of love break the iceburg of the dieing relations.
ReplyDelete-Dheeraj'
बहुत खूब की बेशर्मी ..इतनी खूबसूरत
ReplyDeleteपहली बार देखी .....
अंदाज कैसा हो ...रस होना चहिये .....
भर पूर है
वाह-वाह अजय कुमार जी बहुत खूब - लाजवाब. किस-किस की तारीफ़ करें, पाँचों एक से बढ़कर एक. शर्म-बेशर्मी, महक-नरमी, बिंदास-सहमी, कोमलता-बेरहमी और बर्फ-गर्मी सभी कुछ तो है - बधाई इस शानदार प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteबहुत खूब अजय जी , सही मौका चुना आपने भी रचना गड़ने का :)
ReplyDeleteलाना वो मुस्कान मुझे व्याकुल जो कर दे ।
ReplyDeleteवही महकता बदन वही हाथों की नरमी ..
तिठुरती हुई सर्दी में सच में गर्मी आ जाए ........ मौसम के अंदाज़ से लिखी पर भावनाओं को मिला कर प्रस्तुत करी ये रचना ....... बहुत खूब अजय जी ........
मुम्बई की गरमी मे भी आप सरदी का आन्नद ले रहे है साथी उत्तम रचना है
ReplyDeleteबहुत खूब, सर्दी में गर्मी की एक अच्छी रचना.
ReplyDeleteचलो आज आओ मेरा अन्तर्मन छू लो ।
ReplyDeleteछूने में कुछ कोमलता हो कुछ बेरहमी ॥
भाई ये अंदाज़ तो निराला है।
ये हुआ न सर्दी में भी गर्मी का अहसास।
सुन्दर।
kya baat hai !!! sach mein sardi mein garmi ka ahesaas dila diya aapne
ReplyDeleteMumbai me sardi kahan se aa gai Ajay Sir :) ... sundar rachna..
ReplyDeleteJai Hind...
wah bindas bol ke saath shaleenta bhari rachna, achchi lagi.
ReplyDeleteशानदार...बहुत खूब!!
ReplyDeleteवाह अजय भाई वाह , गजब की खूबसूरती ,उर्जा और उष्मा के साथ । मजा आ गया
ReplyDeleteअजय कुमार झा
कितनी खूबसूरती से बेशर्मी को भी खूबसूरत बना दिया सही मे लाजवाब प्रस्तुति है बधाई
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने शुक्रिया
ReplyDeleteसर्दी में तुम आ जाओ लेकर कुछ गरमी ।
ReplyDeleteआँखों में कुछ शर्म,नमक जितनी बेशर्मी ॥
इस शेर में नमक का प्रयोग अनूठा है....कविता में लय का थोडा ध्यान रखा होता तो कविता की खूबसूरती और बढ़ जाती!
बेहतरीन रचना, शब्दों का चयन अनुपम ।
ReplyDeleteअजय जी
ReplyDeleteबहुत खूब
लाना वो मुस्कान मुझे व्याकुल जो कर दे ।
वही महकता बदन वही हाथों की नरमी ॥
जोरदार रचना के लिए
बधाई ...........
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteSaare ashar gazab hain!
ReplyDeletelast lines r amazing sir
ReplyDeletevah sardi k mahol ko garam kar gayi aapki gazel...bahut khoob...khuda kare ki aapka intzar jaldi khatm ho.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया साहब .... मै आपके हिंदी के प्रति सम्मान और किये गए प्रोत्साहन की प्रशंसा करता हूँ . और हिंदी के प्रचार और प्रस्सर के लिए आपका सहयोग देने का आश्वासन दिलाता हूँ ....
ReplyDeletekhul gayi "gathari" to kaisi sardi,
ReplyDeletebahut khoob ajay saahab.....
khul gayi "gathari" to kaisi sardi,
ReplyDeletebahut khoob ajay saahab.....
बहुत अच्छा.....सर्दी मे भी गर्मी का अहसास.
ReplyDeletekrantidut.blogspot.com
sampoorn rachna sarahneey. Badhai!!
ReplyDeletekohre aur sheet lehar mein garma garm gazal... achha likhte hain aap ! kuch rachnaayein pehli bhi padhi hain...
ReplyDeleteदिल कड के ले गए जी...बहुत खूब
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने!
बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteSanvedanao ki bahut hi uttam abhivyakti hai...!!
ReplyDeleteachcha likha hai.
ReplyDeleteसर्दी में भी गर्मी का अहसास....
ReplyDeleteबहुत ही रसमय प्रणय अनुनय । पढ कर मज़ा आगया । सरदी में भी गरमी का अहसास कराने वाली रचना, मुझे ये गर्मी क्यूं लग रही है ?
ReplyDeleteअभी अभी श्याम सखा श्याम के ब्लॉग पर एक कहानी पढ़ी ये शेर उसका ही एक हिस्सा लग रहे हैं। अजय जी आप भी वो कहानी पढ़ें, शायद आपको भी ऐसा ही महसूस हो।
ReplyDelete@ Rajey Sha
ReplyDeleteआप लिंक देते तो आसान होता । आप शायद ’एनकाउंटर ’कहानी की बात कर रहे हैं , अभी अभी पढ़ा । उसमें बहुत दिनों के बाद मिलन होता है । यहां पुकार है
सर्दी में तुम आ जाओ लेकर कुछ गरमी ।
ReplyDeleteआँखों में कुछ शर्म,नमक जितनी बेशर्मी ॥
आहा.................क्या नमक का प्रयोग कर ग़ज़ल नमकीन कर डाली.......!
नए प्रोयोगों के लिए बधाई.
अजय जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल है आपकी---
पूनम
सुन्दर गजल।
ReplyDeleteBahut sunder abhivykti.........
ReplyDeleteBahut sunder bhav...............
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteअद्भुत, कमाल! और क्या कहूं. आपने चौंका दिया. इतनी सुंदर प्रेम रचना! आपकी लेखनी प्रगति के पथ पर अग्रसर है. मेरी कामना है ऐसे ही विकसित, पुष्पित, पल्लवित होते रहें.
ReplyDelete'सहमी- सहमी'वाली पंक्तियों को फिर ध्यान दीजियेगा.
वाह! क्या बात है.
ReplyDeleteअजय जी ,इतना सुंदर लिखा है ,किन शब्दों से
ReplyDeleteआप की तारीफ करूं ....जो भी लिखा है सब सच
लिखा है .....
Wah! bahut bebak swar tha yeh. Yeh tha dil se nikla aur dil ko chchoota! Nothing superficial! Especially " namak si besharmi" is beautiful expression!
ReplyDeletegood one!
खूबसूरत...........
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना|
ReplyDeleteमुझे आपकी लेखन-शैली काफी प्रभावित करती हैं| कहीं-न-कहीं मैं भी ऐसा लिखने की कोशिश करता रहता हूँ | :-)