लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
सुन्दर रचना अजय जी, हालात पर करारी चोट करती !
ReplyDeleteमान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
ReplyDeleteसदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
अजय जी ....... सारे छन्द सचाई बयान कर रहे हैं ...... कड़वी सचाई, सटीक हैं आज के हालात का जीटा जागता चित्रण किया है आपने ......... संविधान और गणतंत्र बस मज़ाक बन कर रह गया है ......... आपका अंतिम छन्द ... एम. एफ. हुसैन वाला तो दिल में बैठ गया है ..... बहुत ही कमाल का लेखन है ............
पंक्ति से पंक्ति मिल रही है...वर्तमान माहौल पर अच्छा प्रहार है..पर हुसैन का ज़िक्र थोड़ा अजीब लगता है.....हुसैन ही तो सिर्फ़ हिन्दू -मुस्लिम एकता को तोड़ने वाले व्यक्ति नहीं है...इस कार्य में तो बहुत से लोग शामिल है हुसैन का ज़िक्र थोड़ा सरलीकरण लग रहा है... बाकी रचना तो हमेशा की तरह उत्तम है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आयी हू । सुन्दर रचना है । ब्लॉग पर लगा तिरंगा.. मन को भा गया ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...”
ReplyDeletehappy republic day.......
ReplyDeleteसही चित्रण
ReplyDeleteajay ji dil ko chhuti hui rachna
ReplyDeleteजो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता
saadar
praveen pathik
997196908
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना ।
ReplyDeleteहालात को सच्चाई से बयाँ करती ।
अच्छा कटाक्ष करती सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteमान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
ReplyDeleteसदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
अजय जी के हालात पर गहरी चोट सटीक अभिव्यक्ति शुभकामनायें
भाई, मिल कर खुशी हुई । आप का करीबी भी हूं . कभी सिध्दार्थनगर में तैनात भी रहा हूं ।
ReplyDeleteकृपया पूर्वाचल की संस्कृति को जानने के लिए www.lokrang.in भी देखें ।
सुभाष चन्द्र कुशवाहा
dil ki aawaz ko shabdo mein dhala hai..aapne Ajay ji.. dil kahi na kahi awam se bhi jurta hai...aapka dhanyavad bhi karna chata hoon jo aapne mere blog par aakar mera hausla badhaya... dhanyavad dil..se.
ReplyDeleteज़िंदगी के सरोकारो के संघर्ष को नए अर्थों में बयान करने की कोशिश
ReplyDeletebahut badhia rachna samyik , karara vyangya. badhaai.
ReplyDeletebahut badhiya ....mazooda halat par prakash dala hai is rachna ke dwara ......
ReplyDeleteवाह्! बहुत बढिया लगी ये रचना!!
ReplyDeleteधन्यवाद्!!!
बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteछंद-बद्ध सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
ReplyDeleteजन समस्याओं पर कविताई जरूरी है.
वाह अजय सर, वैसे तो पूरा गीत ही उम्दा है लेकिन हुसैन के बारे में तो दिल की बात कह डाली... दुःख है कि यू. के. आ गया और प्रतियाँ सीमित होने की वजह से आपको भेज नहीं पाया......
ReplyDeleteजय हिंद...
अजय भईया बहुत खूब कहा आपने, आपकी रचना तो सिधे दिल तक उतर गयी , लाजवाब ।
ReplyDeleteसही है ।
ReplyDeleteभाग्य विधाता से ये सवाल बेमानी है, जब कि हम सब कमोबेस गुनाह्गार है.सुन्दर रचना.
ReplyDeleteaaj ke halaat ko pratibimbit kartee hai aap kee ye sunder rachana.......Badhai
ReplyDeleteलोकतंत्र पर अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
bahut sacchayi he apki gazel me..
ReplyDeleteaaj ki rajniti aur kanoon ki yahi dasha hai.badhayi.
बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने सच्चाई को, बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यबाद अजय जी, आपने मेरा उत्साह वर्धन किया। आपकी रचना का जवाब नही।
ReplyDeletebahut achha sadhuwad,,
ReplyDeleteहै स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
ReplyDeleteजो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
Bilkul sahi baat kahi aapne. Yahi sub kuch to chal raha hai.
बहुत ही खूबसूरती से आपने सच्चाई का ज़िक्र किया है! उम्दा रचना!
ReplyDeleteबहुत खूबी से हालात से वाकिफ़ करवाया । बधाई हो ।
ReplyDeleteबहुत खूबी से हालात से वाकिफ़ करवाया । बधाई हो ।
ReplyDeleteसच कहें, तो यही तो लोकतंत्र है।
ReplyDeleteजब है जनता ख़ामोश तो पड़ेगा किसपर बोझ।
जुल्म करने वालों से ज़्यादा दोषी है जुल्म सहने वाला। इसलिए आपकी क्रांतिकारी कविता तो बाबा नागार्जुन की याद दिलाती है।
लोकतंत्र अगर मानव होता तो आपके ज़रिये वो अपनी बात ज़रूर कहता.
ReplyDeletesir hume is tarah ki rachna likhna pad rha he ye bidambna hi he . pr apne is mudde ko khubsurti ke saath ubhara he .jo kam se kam thodi rahat to deta he . dhanyvad.......
ReplyDeleteबहुत करारा प्रश्न है ...
ReplyDeleteलगता है इस् प्रश्न का उत्तर शायद अब भाग्यविधाता के पास भी नही होगा ....
यह भी महान भारत की विड्म्ब्ना है ....
फिर भी आओ जय हो करते रहे....
सुन्दर कविता के लिये बधाई सवीकार करे...
----- राकेश वर्मा
लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
ReplyDeleteअब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता
bahut hi shaandaar rahi rachna ,behad pasand aai .
अजय भाई,
ReplyDeleteलोकतॉंत्रिक गणतंत्र का विकास एक सतत् प्रक्रिया है। अभी हमारा गणतंत्र, गणतंत्र तो है लेकिन अपरिपक्व है कहूँ तो अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो जायेगा। गणतंत्र के विकास क्रम में जनजागृति का महत्व अविवादित है। वर्तमान जागृति का जो स्तर है उसके मुताबिक सरकारें चुनी जाती हैं और काम करती हैं। एक शासकीय सेवक के रूप में मेरा अनुभव रहा है कि नीति के स्तर पर कोई दोष नहीं होता, दोष होता है क्रियान्वयन के स्तर पर जहॉं व्यक्तिगत स्वार्थ तथा और बहुत कुछ होता है जो कभी-कभी गणतंत्र को ऐसी स्थिति में ढकेल रहा होता है जो गणतंत्र के लिये अपमानजनक होती हैं।
इस स्थिति को बदलने में हमारी जो भूमिका हो सकती है उसे केन्द्र में रखकर हमारे प्रयास निरंतर जारी रहें तो एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब यही गणतंत्र अपेक्षित सम्मान को प्राप्त करेगा।
बहुत ही बेहतरीन रचना है आपकी सच ही तो है....बधाई...मेरे ब्लॉग का गीत भी देखिएगा कुछ सच्चाई मैंने भी बयान करने की कोशिश की है शायद आपको पसंद आये.
ReplyDeleteलोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
ReplyDeleteअब कितना अपमान सहुंगा,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
bahut achhi kavita.
Loktantra ka apman achhi baat nahi hai. Iska apman hamen aage nahi, prantu peechhe dhkel dega.
Keep it up.
ajay ji aapki rachana ki saari ki saari hi panktiya, hi aaj ke samaaj ki kadawi sachchaiyon se ham sabko roobaroo karawaati hai.
ReplyDeletepoonam
बहुत देर हुई आने में लेकिन पढने के बाद बार-बार पढा- कई बार पढा इस सार्थक और तल्ख रचना को.
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई अजय जी
ReplyDeleteसही कहा है..बेचारा लोकतंत्र
ReplyDeletevakai shabdon mein bhaar hai..bahut badhiya sir!
ReplyDeleteएक सत्य आप ने कितने सरल तरीके से लिख दिया
ReplyDeleteजोरदार रचना
बहुत बहुत आभार.
जिसके हाथ में मोटी लाढी भैंस वही हांक ले जाता
ReplyDeleteअब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ।
अजय जी गण तंत्र दिवस पर आपकी ये कविता बहुत भायी । यथार्थ का ही वर्णन है आपके इस चित्रण में ।
जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
ReplyDeleteकरें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
लोकतंत्र का देश में असली रूप क्या है, आपने चित्रित कर दिया. दिन-प्रतिदिन आप के लेखन में न सिर्फ विकास हो रहा है बल्कि आप ऐसे ज्वलंत मुद्दे उठा रहे है जिन्हें कलमबद्ध करना आज की जरूरत है. बेहद सफल प्रस्तुति.
ReplyDeleteajay ji, lajawab kavita hai. aapki rachna desh prem ke bhavo se labalab hai. nishchay hi padne valo ko atamchintan ke liye badhya kar degi
ReplyDeletebahut khoob sabki pol khol di aapne to
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletebahoot achha
ReplyDeletesir main aapki feeling ko samajh raha hun, lakin dukh is baat ka hai ki aisi feeling aapki hai, meri bhi hai lakin uski feeling kuch or hi hai,jo in sab ke liye jimmedaar hai...overalll so nice....
ReplyDeleteइससे बेहतर क्या हो सकता है,,आपने तो मुझे खुश कर दिया,कहने के तो बहुत कुछ हैं,लेकिन कितना कहूं
ReplyDeleteवाह! सुंदर पोस्ट.
ReplyDeleteहर बार बेहतरीन लिखते हैं आप ।
सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
ReplyDeleteघ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥ek katu satya bayan kar gaye aap apni rachna me ,sundar .
ajay ji sundar rachna... pyar se khinchaai...
ReplyDeletemujhe aisa laga jaise meri soch ko itna sundar roop kisne de diya.......sundar rachna,sateek sandesh.
ReplyDeletebadhai ho shriman.
aap ka blog dikhayee nahi pad raha sirf fallow karane par pad sakate hai keya karan hai
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeletebahaut khub ajay ji
ReplyDeleteaap ko maine aapna guru mana
bahaut khub ajay ji
ReplyDeleteaap ko maine aapna guru mana
sabdo se jyada gahri lagi bhawanaye.kadwa sach batane ke liye SADHUVAAD
ReplyDeletepar kya kare jina isi ka naam hai?
बधाईयाँ होली की...मन-तन और जीवन हो जाये रंगीन...
ReplyDeleteइस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ReplyDeleteना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
bahat behetarin lekh he.. sir, bahat bahat achhi lekh he...
ReplyDeleteजो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
ReplyDeleteकरें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
बहुत खूब
Ajay ji, apki rachna 'Bhagya Vidhata' ne to apratyaksh roop se hi sahi M.F. Hussain ko hindustan se bahar hi kar diya,
ReplyDeleteiske liye aap dhanyawad k patra hain.
-Surendra Singh Garhwali
सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
ReplyDeleteघ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता
क्या लिखा है आपने ..जवाब नहीं लाजवाब ..
आपका आभार आप ब्लॉग तक आये .
PRIY AJAY JI
ReplyDeleteAapki jo byatha aur dukh hai wasme aap apne aap ko kabhi akela na samjhen.Wah din aab door nahi jab sahi mayne main rawan ka badh hoga chahe wah prdhan mantri ki kurshi par baitha ho ya krishi mantri ke kursi par ya kishi aur pad par baith kar aam logon ko satane aur unpar atyachar karne ka kam kar raha ho.Bus aap ek antim ahinsak aur sarthak sangharsh ke liye apne aap ko dus rupaiya aur har mahine ek din dene ke liye khud taiyar rahen aur iske liye apne aas parosh ke samaj ko bhi ekjut karne ka pryas poori takat se karen.Aapko hamari sahayata kabhi chahiye to hamare mobile pe kabhi bhi fhon karen.EK SACHCHE NAGRIK KI SAHAYATA AUR SURAKSHA HI EK SACHCHE NAGRIK KI PAHCHAN HAI.
hridaya ki bat hridaya ko chhu gai.
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