अभी अभी गाँव से लौटा हूं , सुखद अनुभूतियों के साथ ।हमारे गाँव के आसपास बागों की बहुतायत है और लगभग ३ कि.मी. पर जंगल है तो वातावरण काफी अच्छा रहता है ।हालांकि गर्मी बहुत थी , फिर भी शाम से मौसम ठीक हो जाता था ,और छत पर सोने का अह्सास सुखद था । हैंडपम्प से नहा कर तो अत्यधिक आनंद आया ।मैनें बेटे को बताया कि ये वातानुकूलित जल है, गर्मी में ठंढ़ा तथा सर्दी में गर्म । शायद उसे
शीतल जल का अर्थ भी समझ में आ गया होगा ।
इस बार आम की फसल कम है । लेकिन ये तो होता ही है ,कि आम एक साल अच्छे आते हैं और दूसरे साल कम । फिर भी पर्याप्त है ।
एक झलक बाग की
खबरदार ,
आम तोड़ना मना है
बेटे ने लिया ताजे आम का स्वाद (इससे ताजे आम मिलेंगे भी नही )
आज तो बस इतना ही ,आगे और भी बातें होंगी ।
हो गया मैं नास्टेल्जिक , आकर के गाँव में ।
ए.सी. डाउन मार्केट हुआ , पीपल के छाँव में ॥
sukhad yatra ka manohari varnan... photo bhi nice...
ReplyDeletephoto acchhe lage.
ReplyDeletefotu dekh ke man lalcha gaya...
ReplyDeleteए.सी. डाउन मार्केट हुआ , पीपल के छाँव में ॥
ReplyDeleteए.सी. को डाउन मार्केट करने मैं भी गाँव जा रहा हूँ
बहुत सुन्दर दृश्य और फिर आम ने तो मुँह में पानी ला दिया.
मनभावन सचित्र पोस्ट... वाह आभार
ReplyDeleteBahut sundar Ajya ji . Good to know that during this period you have enjoyed real life
ReplyDeleteबेहद सुन्दर शब्द और मनभावन चित्र....
ReplyDeleteregards
आम के बाग़ ! भाई हम तो ख्वाबों में ही देख सकते हैं ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर देखकर ।
गाँव की तो बात ही कुछ और है , विशेषकर जब कुछ दिन के लिए ही जाना हो ।
एक सुंदर सचित्र वर्णन|आम का स्वाद मुंह में आ रहा है
ReplyDeleteबधाईआशा
चित्रों से सजी हुई रचना बहुत ही मनभावन है!
ReplyDeletehume bhi apne gaon ke yaad aa gai... is saal nahi jaa paya... jyada hi afsoos ho raha hai... yadon ke ek gathri humne bhi share kar li aapke sath
ReplyDeleteअपना गाँव सभी को इसी तरह लुभाता है.
ReplyDeleteनेचुरल पोस्ट।
ReplyDeleteआमों के साथ बच्चे ....कुछ बदमाशी
ReplyDeleteदेख अपना बचपना कुछ यूँ याद आया
ऎसी ही बगिया थी
आम ऊपर ,काफी ऊपर लगे थे
हमारा हाथ ....नहीं पहुंचता
आम खट्टे हैं
यह सोच कर घर आ जाता ...
आमों के साथ बच्चे ....कुछ बदमाशी
ReplyDeleteदेख अपना बचपना कुछ यूँ याद आया
ऎसी ही बगिया थी
आम ऊपर ,काफी ऊपर लगे थे
हमारा हाथ ....नहीं पहुंचता
आम खट्टे हैं
यह सोच कर घर आ जाता ...
आमों के साथ बच्चे ....कुछ बदमाशी
ReplyDeleteदेख अपना बचपना कुछ यूँ याद आया
ऎसी ही बगिया थी
आम ऊपर ,काफी ऊपर लगे थे
हमारा हाथ ....नहीं पहुंचता
आम खट्टे हैं
यह सोच कर घर आ जाता ...
Nice creation, detailed discription and ultimately the exposure your son will get from the vilage, will give him a new dimension to think for the life.
ReplyDeleteaap ne na sirf apni yadon ki gathari ko hamen diya balki agli pidhi ke naunihalon ko bhi unki yadon ki gathari ke liye bahut sa masala de diya, kuch likha kuch samajha sa .
dhanyavad sahit
Sudhir K Rinten
skrinten.blogspot.com
छत पर सोने की बात पढ़कर तो मुझे आपसे ईर्ष्या हो रही है ।
ReplyDeleteसुन्दर सचित्र वर्णन हम तो रोज़ ऐसे नजारे देखते हैं सडक के उस पार गाँव है शहर और गाँव दोनो का लुत्फ उठाते हैं शुभकामनायें
ReplyDeleteसीधे, सपाट और निश्छल लेखन के लिए बधाई...आपके शब्दों में गाँव की मिटटी की महक आ रही है...ऐसे कुछ और दृश्यों का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteइसे ना मैं दिल जलाऊ पोस्ट कहता हूँ.. और तब तक कहता रहूँगा जब तक आप मुझे गाँव नहीं ले जाते... :)
ReplyDeleteस्वागत है दीपक जी ,फिलहाल तो कभी मुम्बई में दर्शन दीजिये ।
ReplyDeletebahut badhiyan...aisa lga jaisey main khud hi aam ke bag mein a gai. Photos bahut hi jeevant lagai gai hain.
ReplyDeleteअमवा की बयार देख मन लहालोट हो गईल बा ....तनिक बुकल नमक लै आवा यार.....अमवा चखे के मन करत बा :)
ReplyDeleteमस्त पोस्ट है।
dil to hamara bhi bachcha hai jee.........aapke bete ko dekh kar yaad aa gayee, purani yaade........wo din jab ham bhi aam todne pahuch jaya karte the.......bago me.......lekin apna nahi, dusre ko baago me.......:)
ReplyDeletesaare photoes pyare hain!!
जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
ReplyDeleteकाले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
आम के बाघ का मज़ा याद दिलाने के लिए धन्यवाद्
ReplyDeleteबधाई भाई अजयजी बहुत ही रोचक आलेख । इस समय मैँ भी गाँव आया हूँ।
ReplyDeletephoto bahut achche the. hame bhi apana bachpan yaad aa gaya.
ReplyDeleteभाई वाह..आपने तो सचमुच इन तस्वीरों के माध्यम से, मेरे स्वयं के बचपन की सुनहरी यादें जो, आम के बागो में घटित हुई थी, वो सब फिर से मेरी आँखों के सामने उपस्थित हो गया....
ReplyDeleteआपका ये ब्लॉग बहुत ही रोचक है....
बहुत बहुत धन्यवाद
मोहक चित्रों सहित मनोहारी चित्रण.मेरे ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का शुक्रिया.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आते ही लिट्टी का वर्णन और दर्शन....अपनापन महसूस हुआ। मैं लिट्टी लगाता हूं। कम से कम दर्जन भर मौकों पर दर्जनों मित्रों को तृप्त किया है। अंतिम बार कोई पंद्रह दिन पहले। एनसीआर में भी गोइंठा(कंडा) जुगाड़ लेता हूं। लेकिन खलिहान में लिट्टी लगाने और खाने की बात कुछ और है। लगता है गांव जाना पड़ेगा।
ReplyDeletemujhe bachapan yaad aa gaya...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसर गाँव का मज़ा अलग ही है !शहर में सूरज कब निकला पता नहीं चलता और गाँव में सूरज ही जगाता है !अपने बहुत अच्छा लिखा जिसे पढ़ मन खुश हो गया !
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