२००७ में २४ सितम्बर को भारत ने पाकिस्तान को हरा कर पहला टी२० वर्ड कप अपने नाम किया था। अंतिम ओवर की वो गेंद आज भी मिस्बाह उल हक के सपनों मे जरूर आती होगी ,आज उसकी याद को ताजा करिये ।
कितने तरह का होता है लक
जब ठीक है तो गुड लक.
जब बुरा है तो बैड लक.
लेकिन जब झंड हो तो -मिसबाह उल हक
(पूर्व में सस्ते शेर ब्लाग पर पोस्ट किया जा चुका है ,चित्र गूगल से साभार )
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अजय कुमार (गठरी ब्लाग पर)
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ReplyDeleteInterestic post !
Good luck to you !
Regards,
Divya
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jab jhand hota hai misbah-ul-hakk.....wow........:)
ReplyDeleteye line yaad rahegi........
सही याद दिलाया ।
ReplyDeleteकमाल का क्षण था वह भी ।
अच्छी याद दिलाई ...
ReplyDeleteअजय जी आपका मारा हुआ शेर तो बहुत अच्छा था, लेकिन बेचारा मिस्बाह उल हक़ तो गीदड़ बन गया बेचारा!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर पलों की याद दिलाई आपने. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
achha yaad dilaya aapne, .....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस बार धर्मवीर भारती की एक रचना...
जरूर आएँ.....
अजयजी, मेरे ब्लॉग "सुराही" पर आकर "अगर दे दो इजाज़त, आपकी ज़ुल्फोंसे खेलेंगे" इस गज़ल पर टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद. वर्ड वेरिफिकेशन मैं इस लिए नहीं हटाता क्योंकी मेरा अनुभव यह है की ऐसा करने पर स्पॅम कमेन्ट्स बहुत ज्यादा आने लगते हैं.
ReplyDeleteमुश्किल है कि कोई क्रिकेट प्रेमी ये तारीख भूल पाए.. :) आप जिस तरह सस्ते शेर ब्लॉग का नाम लिखना नहीं भूले उसी को आदर्श ब्लोगिंग कहते हैं सर.
ReplyDeleteये पल फिर से याद दिलाने का आभार ...!
ReplyDelete@ दीपक मशाल जी
ReplyDeleteअपना ब्लाग शुरू करने के पहले मैं ’सस्ते शेर’ ब्लाग पर लिखा करता था । कुछ दिनों बाद मुझे लगा कि कुछ लोग सस्तेपन पर उतर आये हैं तो मैंने वहां लिखना बंद कर दिया और अपना ब्लाग बना लिया ।ये उसी दौरान लिखा गया था ।
अजय जी,
ReplyDeleteसच में नहीं भूल सकते वो बॉल. वो कैच और अब ये शेर भी।
चेतन शर्मा -जावेद मियांदाद पर भी कुछ लिखा है क्या?
चाहे कुछ भूल ज्क़ाये मगर ये नही भूलेंगे। बडिया। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा वोह पल वाकई में भूलने वाला नहीं है शुक्रिया याद दिलाने का .
ReplyDeleteरोमांचक क्षण था वह ...
ReplyDeleteवाह! बहुत अच्छा लगा! ख़ूबसूरत पलों की याद दिला दी है आपने !
ReplyDeleteWelll Nicely written Sahab...I still remember that match...Lol...
ReplyDeleteउन फ़ारसी के कठिन शेरोन को समझने की नाकाम याबी से बेहतर तो सस्ते शेरोन की वाह है....और निदा तो यहाँ तक कहते हैं....की ...मीरो-ग़ालिब के शेरोन ने किसका दिल बहलाया है....सस्ते शेरों को लिख लिख कर हमने अपना घर बनवाया है...... Peace :)
खूब याद दिलाया पुरानी यादो को धन्यबाद
ReplyDeleteखूब याद दिलाया पुरानी यादो को धन्यबाद
ReplyDeleteखूब याद दिलाया पुरानी यादो को धन्यबाद
ReplyDeleteवाह .. क्या लम्हा था वो ... आज भी आँखों के सामने आता है तो रोमांच आ जाता है ....
ReplyDeleteवाह क्या मारा है ..
ReplyDeleteवाह क्या मारा है ..
ReplyDeleteye to sach hai ,majedaar post
ReplyDeleteबढिया ।
ReplyDeleteappreciable!!! really
ReplyDeleteplz cm to my blog...n suggest!!!!!
appreciable!!! really
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