Saturday, October 2, 2010

बापू क्या ये राज-धर्म है ? (अजय की गठरी )

तन पे लंगोटी ,हाथ में लाठी ।
दुबली पतली सी कद-काठी ॥

गोल गोल आँखों का चश्मा ।
बातों में जादुई करिश्मा ॥

भारत प्रिय था ,प्राण से ज्यादा ।
राम राज लाने का इरादा ॥

देश प्रेम का अलख जगाया ।
अंग्रेजों को मार भगाया ॥

भारत उनकी प्राण-आत्मा ।
इसीलिये कहलाये महात्मा ॥

सत्य अहिंसा के थे पुजारी ।
राष्ट्रपिता को नमन हमारी ॥

हम तो सिर्फ ,निभाते रस्में ।
झूठ में खाते ,आपकी कस्में ॥

रहता है फटेहाल ,स्वदेशी ।
काट रहा है माल , विदेशी ॥

अन्न गोदामों में है सड़ता ।
भूख से मुफलिस रोज ही लड़ता ॥

बापू क्या ये राज-धर्म है ?
भूख से मौतें राष्ट्र शर्म है ॥

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गठरी पर-अजय कुमार
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56 comments:

  1. बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति है !

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  2. बापू , क्या ये राज धर्म है ...
    क्या जवाब देंगे बापू भी ..
    युगपुरुष को नमन ...!

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  3. सुन्दर गजल प्रस्तुति...

    राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को जयंती अवसर पर शत शत नमन....

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  4. बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
    सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.

    कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
    जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
    कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
    परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?

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  5. बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
    सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.

    कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
    जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
    कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
    परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?

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  6. गाँधी बाबा को क्या शब्दों में उतारा है .... बहुत खूब .... गाँधी जयंती और शास्त्री जी का जनम दिन मुबारक हो ...

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  7. बहुत सटीक और सामयिक प्रश्न खडे किये हैं आपने. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम

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  8. सुन्दर रचना ....शुभकामनाएं ।

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  9. हम तो सिर्फ ,निभाते रस्में ।
    झूठ में खाते ,आपकी कस्में ॥
    सच्चाई तो यही है.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  10. एकदम सटीक और सार्थक भी....... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  11. बेशक, इन हालातों में तो बापू को भी कष्ट होता ।
    गाँधी जयंती पर सार्थक रचना ।

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  12. नमस्कार अजय जी !!!!!!!!
    बहुत ही उम्दा लिखा है
    टिप्पणी के लिये धन्यवाद !!!!!!!!

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  13. बेहतरीन रचना। बेचारे बापू ने तो ये सोचा भी नही होगा कि मेरे स्पूत मेरे भारत का ये हाल करेंगे। बापू जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को शत शत नमन।

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  14. प्रभावी रचना

    प्रासंगिक प्रस्‍तुति... ।

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  15. सार्थक व सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  16. भूंख से मौतें राष्ट्र शर्म है...........
    हम तो शर्मसार हैं हीं पर वो मुठी भर तबके, जो इसके जिम्मेदार हैं, उन्हें शर्मसारिता का कब अहसास होगा.............
    आज के युग में शायद यही एक यक्ष प्रश्न रह गया है..........

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  17. अन्न गोदामों में है सड़ता,
    भूख से मुफलिस रोज है लड़ता !

    बहुत प्रभावशाली रचना ,
    बापू को शत-शत नमन !

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  18. क्या जवाब देंगे बापू भी ..

    बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
    बहुत सुन्दर सशक्त रचना .....
    अच्छी प्रस्तुति

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  19. रामराज्य की तेरी कल्पना
    उडी हवा में बनके कपूर
    बच्चो ने पढ़ लिखना छोड़ा
    तोड़ फोड़ में है मशगूल
    नेता हो गये दल बदलू
    देश की पगड़ी रहे उछाल
    तेरे पूत बिगड़ गये बापू
    दारुबंदी हुई हलाल
    फिर भी राजघाट पे तेरे फूल चढ़ते सुबह शाम
    चिठ्ठी में सबसे पहले तुझको
    लिखता राम राम ....

    गीतकार प्रदीपजी का ये गीत यद् आगया आपकी कविता पढ़कर |

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  20. रहता है फटेहाल ,स्वदेशी ।
    काट रहा है माल , विदेशी ॥

    अन्न गोदामों में है सड़ता ।
    भूख से मुफलिस रोज ही लड़ता ॥

    बापू क्या ये राज-धर्म है ?
    भूख से मौतें राष्ट्र शर्म है
    bahut hi shaandaar rachna .baapu ko shat -shat naman .

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  21. bahut hi sundar kavita.....
    khubsurat chitran bapu ka...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
    क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
    अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
    http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html

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  22. कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
    जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
    कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
    परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?

    बहुत सशक्त रचना ....
    बहुत अच्छी प्रस्तुति
    swagat ke sath vijayanama.blogspot.com

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  23. खादी केवल नाम नही हैं
    खादी केवल काम नहीं हैं
    खादी परिचायक है देश के प्रति
    आपके अभिमान का
    मै भी हू भाई.................
    ऐ बापू क्या जादू की झप्पी दी है.

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  24. nice thought........but why Bapu must give the answer.....jawad to hame dena hai.....vo to rasta dikha gaye....chalna to hame hai......

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  25. बहुत सुन्दर !

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  26. बहुत अच्छी कविता 'बधाई '

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  27. हम तो सिर्फ निभाते रस्‍में
    झूठ में खाते आपकी कसमें

    सत्‍य, सुन्‍दर और सटीक रचना...

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  28. यह सवाल गान्धी जी के वारिसों से पूछा जाए ।

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  29. Ajaiji,
    Bhavpurn sashakt rachna hai. Apke sawal wazib hai,yah isliye hai ki Gandhiji,Shastriji ko pujniye banaya gaya hai anukarniy nahi.

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  30. अच्छा लिखते हो भैयाजी
    कभी हमारे द्वारे भी आना
    जै राम जी की

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  31. वाह...वाह...वाह...लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...

    नीरज

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  32. माननीय अजय जी आप के प्रबल मेधाशक्ति कि जितनी प्रशंसा किया जय कम है, क्योंकि किसी ब्यक्ति का सिर्फ अपनी मन कि आँखों से देख कर और हूबहू वैसे ही उसके ब्यक्तित्व का और उसकी शारीरिक संरचना को इतने सरल तरीके से आप ने उभरा है, वाकई प्रशंसा के काबिल है | बहुत - बहुत शुभ कामना

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  33. बापू के बारे में कहा जाता है वो सर्वमान्य नेता थे। हिन्दूओं की सभाओं में कुरान की आयतें सुनाते थे पर क्या कोई ऐसा रिकार्ड या कभी सुना गया तथ्य है कि मुस्लिमों की सभाओं में उन्होंने गीता के श्लोक पढ़ हो? ये कैसी सर्वमान्यता है, कूप्या मेरा मार्गदर्शन करें।

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  34. @ अमित कुमार जी
    इस बारे में मैं आपको यही सलाह दुंगा कि ,आप गांधी जी से संबंधित किसी संग्रहालय से संपर्क कर लें ,अथवा सूचना अधिकार के तहत ,सरकार से जानकारी मांग लीजिये ।

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  35. @ अमित कुमार जी
    इस बारे में मैं आपको यही सलाह दुंगा कि ,आप गांधी जी से संबंधित किसी संग्रहालय से संपर्क कर लें ,अथवा सूचना अधिकार के तहत ,सरकार से जानकारी मांग लीजिये ।

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  36. बापू अब किस्से कहानिओं की पात्र बन गए हैं , अब उनकी बातें हातिमताई की कहानिओं जैसी लगती हैं , अहिंसा जो उनका जीवन मंत्र था अब लगता गई जैसे कोई दैवीय हथियार रहा हो , समझा जा सकता है की हम कौन सी दुरगति की ओर बढ़ रहे हैं, कुछ दसक पहले हमारे एक वीर योद्धा ने एक मसाल जलाई थी दुनिया ने उसकी सोच के सामने सर झुकाया था . और आज - हम खुद उनके आदर्शों पर विसवास नहीं कर पा रहे हैं , नया करने की तमीज तो हमने खो ही दी है , पर अपने बुजुर्ग के नक्से कदम पर भी नहीं चल पा रहे हैं पहले लगता था की गाँधी ने हमें दिया है नया जीवन , अब लगता है हम में से कुछ बिचारे उनकी जिंदगी बचा रहे हैं.
    धन्यवाद् उस महापुरुस को याद करने के लिए उसकी यादों को जिन्दा रखने का प्रयास करने के लिए .

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  37. मन-मेल के लिए पहले मन का मैल निकलना जरूरी है। यहाँ पढ़ें

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  38. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! बधाई!

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  39. shaandar/damdar/ prastuti

    badhai kabule

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  40. behtareen khayaal....

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  41. bahut acchi racha hai aap ki magar yh gazal ya kavita yh spasht kijiyega...muje tho kavita lagi jo ki ek bahut he sateek abhivaykte hai...keep writting and keep reading best of luck...

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  42. उनके आदर्शों की लौ अपने अपने मनों में जलाकर उन के सपनों के भारत का सपना साकार करने का प्रयास ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी. सुंदर रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  43. @ Pallavi ji

    आप नें सही सोचा यह गजल नहीं ,कविता ही है ।

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  44. बस आ गया शुभकामनाएं देने।
    सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
    महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    स्वरोदय महिमा, “मनोज” पर!

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  45. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  46. विजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.

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  47. गाँधी जी के बारे में किसी ने लिखा है देख कर तो बहुत अच्छा लगा. मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी के लिए धन्यवाद

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