तन पे लंगोटी ,हाथ में लाठी ।
दुबली पतली सी कद-काठी ॥
गोल गोल आँखों का चश्मा ।
बातों में जादुई करिश्मा ॥
भारत प्रिय था ,प्राण से ज्यादा ।
राम राज लाने का इरादा ॥
देश प्रेम का अलख जगाया ।
अंग्रेजों को मार भगाया ॥
भारत उनकी प्राण-आत्मा ।
इसीलिये कहलाये महात्मा ॥
सत्य अहिंसा के थे पुजारी ।
राष्ट्रपिता को नमन हमारी ॥
हम तो सिर्फ ,निभाते रस्में ।
झूठ में खाते ,आपकी कस्में ॥
रहता है फटेहाल ,स्वदेशी ।
काट रहा है माल , विदेशी ॥
अन्न गोदामों में है सड़ता ।
भूख से मुफलिस रोज ही लड़ता ॥
बापू क्या ये राज-धर्म है ?
भूख से मौतें राष्ट्र शर्म है ॥
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गठरी पर-अजय कुमार
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बहुत सशक्त रचना .....
ReplyDeleteबहुत ही सटीक अभिव्यक्ति है !
ReplyDeleteबापू , क्या ये राज धर्म है ...
ReplyDeleteक्या जवाब देंगे बापू भी ..
युगपुरुष को नमन ...!
सुन्दर गजल प्रस्तुति...
ReplyDeleteराष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को जयंती अवसर पर शत शत नमन....
बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
ReplyDeleteबापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
ReplyDeleteबापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
अच्छा शब्दचित्र!!
ReplyDeleteगाँधी बाबा को क्या शब्दों में उतारा है .... बहुत खूब .... गाँधी जयंती और शास्त्री जी का जनम दिन मुबारक हो ...
ReplyDeleteबहुत सटीक और सामयिक प्रश्न खडे किये हैं आपने. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
सुन्दर रचना ....शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteहम तो सिर्फ ,निभाते रस्में ।
ReplyDeleteझूठ में खाते ,आपकी कस्में ॥
सच्चाई तो यही है.
सुन्दर अभिव्यक्ति
एकदम सटीक और सार्थक भी....... बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेशक, इन हालातों में तो बापू को भी कष्ट होता ।
ReplyDeleteगाँधी जयंती पर सार्थक रचना ।
नमस्कार अजय जी !!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लिखा है
टिप्पणी के लिये धन्यवाद !!!!!!!!
बेहतरीन रचना। बेचारे बापू ने तो ये सोचा भी नही होगा कि मेरे स्पूत मेरे भारत का ये हाल करेंगे। बापू जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को शत शत नमन।
ReplyDeleteप्रभावी रचना
ReplyDeleteप्रासंगिक प्रस्तुति... ।
सार्थक व सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteउम्दा भाव।
ReplyDeleteभूंख से मौतें राष्ट्र शर्म है...........
ReplyDeleteहम तो शर्मसार हैं हीं पर वो मुठी भर तबके, जो इसके जिम्मेदार हैं, उन्हें शर्मसारिता का कब अहसास होगा.............
आज के युग में शायद यही एक यक्ष प्रश्न रह गया है..........
चन्द्र मोहन गुप्त
अन्न गोदामों में है सड़ता,
ReplyDeleteभूख से मुफलिस रोज है लड़ता !
बहुत प्रभावशाली रचना ,
बापू को शत-शत नमन !
क्या जवाब देंगे बापू भी ..
ReplyDeleteबापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
बहुत सुन्दर सशक्त रचना .....
अच्छी प्रस्तुति
रामराज्य की तेरी कल्पना
ReplyDeleteउडी हवा में बनके कपूर
बच्चो ने पढ़ लिखना छोड़ा
तोड़ फोड़ में है मशगूल
नेता हो गये दल बदलू
देश की पगड़ी रहे उछाल
तेरे पूत बिगड़ गये बापू
दारुबंदी हुई हलाल
फिर भी राजघाट पे तेरे फूल चढ़ते सुबह शाम
चिठ्ठी में सबसे पहले तुझको
लिखता राम राम ....
गीतकार प्रदीपजी का ये गीत यद् आगया आपकी कविता पढ़कर |
रहता है फटेहाल ,स्वदेशी ।
ReplyDeleteकाट रहा है माल , विदेशी ॥
अन्न गोदामों में है सड़ता ।
भूख से मुफलिस रोज ही लड़ता ॥
बापू क्या ये राज-धर्म है ?
भूख से मौतें राष्ट्र शर्म है
bahut hi shaandaar rachna .baapu ko shat -shat naman .
bahut hi sundar kavita.....
ReplyDeletekhubsurat chitran bapu ka...
मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
ReplyDeleteजेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
बहुत सशक्त रचना ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति
swagat ke sath vijayanama.blogspot.com
खादी केवल नाम नही हैं
ReplyDeleteखादी केवल काम नहीं हैं
खादी परिचायक है देश के प्रति
आपके अभिमान का
मै भी हू भाई.................
ऐ बापू क्या जादू की झप्पी दी है.
nice thought........but why Bapu must give the answer.....jawad to hame dena hai.....vo to rasta dikha gaye....chalna to hame hai......
ReplyDeletehajir sir
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeletesashakt rachna
ReplyDeletebadhai
बहुत अच्छी कविता 'बधाई '
ReplyDeleteहम तो सिर्फ निभाते रस्में
ReplyDeleteझूठ में खाते आपकी कसमें
सत्य, सुन्दर और सटीक रचना...
यह सवाल गान्धी जी के वारिसों से पूछा जाए ।
ReplyDeleteAjaiji,
ReplyDeleteBhavpurn sashakt rachna hai. Apke sawal wazib hai,yah isliye hai ki Gandhiji,Shastriji ko pujniye banaya gaya hai anukarniy nahi.
अच्छा लिखते हो भैयाजी
ReplyDeleteकभी हमारे द्वारे भी आना
जै राम जी की
वाह...वाह...वाह...लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनीरज
माननीय अजय जी आप के प्रबल मेधाशक्ति कि जितनी प्रशंसा किया जय कम है, क्योंकि किसी ब्यक्ति का सिर्फ अपनी मन कि आँखों से देख कर और हूबहू वैसे ही उसके ब्यक्तित्व का और उसकी शारीरिक संरचना को इतने सरल तरीके से आप ने उभरा है, वाकई प्रशंसा के काबिल है | बहुत - बहुत शुभ कामना
ReplyDeleteaap bahut accha likhte hi
ReplyDeleteबापू के बारे में कहा जाता है वो सर्वमान्य नेता थे। हिन्दूओं की सभाओं में कुरान की आयतें सुनाते थे पर क्या कोई ऐसा रिकार्ड या कभी सुना गया तथ्य है कि मुस्लिमों की सभाओं में उन्होंने गीता के श्लोक पढ़ हो? ये कैसी सर्वमान्यता है, कूप्या मेरा मार्गदर्शन करें।
ReplyDelete@ अमित कुमार जी
ReplyDeleteइस बारे में मैं आपको यही सलाह दुंगा कि ,आप गांधी जी से संबंधित किसी संग्रहालय से संपर्क कर लें ,अथवा सूचना अधिकार के तहत ,सरकार से जानकारी मांग लीजिये ।
@ अमित कुमार जी
ReplyDeleteइस बारे में मैं आपको यही सलाह दुंगा कि ,आप गांधी जी से संबंधित किसी संग्रहालय से संपर्क कर लें ,अथवा सूचना अधिकार के तहत ,सरकार से जानकारी मांग लीजिये ।
बापू अब किस्से कहानिओं की पात्र बन गए हैं , अब उनकी बातें हातिमताई की कहानिओं जैसी लगती हैं , अहिंसा जो उनका जीवन मंत्र था अब लगता गई जैसे कोई दैवीय हथियार रहा हो , समझा जा सकता है की हम कौन सी दुरगति की ओर बढ़ रहे हैं, कुछ दसक पहले हमारे एक वीर योद्धा ने एक मसाल जलाई थी दुनिया ने उसकी सोच के सामने सर झुकाया था . और आज - हम खुद उनके आदर्शों पर विसवास नहीं कर पा रहे हैं , नया करने की तमीज तो हमने खो ही दी है , पर अपने बुजुर्ग के नक्से कदम पर भी नहीं चल पा रहे हैं पहले लगता था की गाँधी ने हमें दिया है नया जीवन , अब लगता है हम में से कुछ बिचारे उनकी जिंदगी बचा रहे हैं.
ReplyDeleteधन्यवाद् उस महापुरुस को याद करने के लिए उसकी यादों को जिन्दा रखने का प्रयास करने के लिए .
मन-मेल के लिए पहले मन का मैल निकलना जरूरी है। यहाँ पढ़ें
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! बधाई!
ReplyDeleteshaandar/damdar/ prastuti
ReplyDeletebadhai kabule
bahut achchi rachna.
ReplyDeletebehtareen khayaal....
ReplyDeletebahut acchi racha hai aap ki magar yh gazal ya kavita yh spasht kijiyega...muje tho kavita lagi jo ki ek bahut he sateek abhivaykte hai...keep writting and keep reading best of luck...
ReplyDeleteउनके आदर्शों की लौ अपने अपने मनों में जलाकर उन के सपनों के भारत का सपना साकार करने का प्रयास ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी. सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
@ Pallavi ji
ReplyDeleteआप नें सही सोचा यह गजल नहीं ,कविता ही है ।
बस आ गया शुभकामनाएं देने।
ReplyDeleteसर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
स्वरोदय महिमा, “मनोज” पर!
.
ReplyDeleteAjay ji,
What's up ?
.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteविजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
ReplyDeleteगाँधी जी के बारे में किसी ने लिखा है देख कर तो बहुत अच्छा लगा. मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteएक-से-बढ़कर-एक रचनाएँ!
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