तुम्हारे प्यार में बरबाद हो कर ।
मैं फिर भी याद करता हूं तुम्हें ,दिन रात रो कर ॥
वो लम्हे प्यार के
जिसमें सजा लेते थे सपने ।
बिखर जाते थे पल में ,
तुम्हारा साथ खोकर ॥
इधर मैं भी हूं तंन्हां
उधर तुम भी अकेली ।
चांदनी जल रही है ,
बहुत ठंडा है बिस्तर ॥
ये अंदाजा किसी चेहरे से
कोई क्या लगाये ।
लगे इस जिंदगी में उसको
कितनी बार ठोकर ॥
मेरी मासूमियत का फायदा
सबको मिला है ।
मुझे सबने बना डाला
हर इक इल्जाम का दर ॥
मुझे मनहूस भी
तुमने कहा था ।
तबस्सुम से मेरे
अंजान हो कर ॥
न बाबूजी जी झिड़की
न अम्मा की नसीहत ।
तूं घर से दूर है तो
जरा भगवान से डर ॥
गुजारिश ,इल्तजा,
मिन्नत है ,भगवन ।
जरा लम्बी तो दे दो
सभी पैरों को चादर ॥
अजय जी क्या लिखा है..कसम से...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... कुछ पंक्तियाँ तो एकदम लाजवाब हैं...
क्या क्या बदल गया है ....
गुजारिश ,इल्तजा,
ReplyDeleteमिन्नत है ,भगवन ।
जरा लम्बी तो दे दो
सभी पैरों को चादर ॥
Bahut sunder.... saarthak vichar ...
मेरी मासूमियत का फायदा
ReplyDeleteसबको मिला है ।
मुझे सबने बना डाला
हर इक इल्जाम का दर ॥
सच ऐसा ही होता है ...जो ज्यादा फ़िक्र करते हैं उन पर ही इलज़ाम लगते हैं
गुजारिश ,इल्तजा,
मिन्नत है ,भगवन ।
जरा लम्बी तो दे दो
सभी पैरों को चादर ॥
बहुत अच्छी मिन्नत ....
सुंदर प्रेम कविता... कुछ ठोस प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष विम्ब..
ReplyDeleteबढ़िया है भाई ।
ReplyDeleteमेरी मासूमियत का फायदा
ReplyDeleteसबको मिला है ।
मुझे सबने बना डाला
हर इक इल्जाम का दर ॥
शायद मासूमियत का मुकद्दर यही है। बहुत गहरे एहसास हैं। अच्छी रचना के लिये बधाई।
अजय जी, छा गए आज तो आप... गठरी में नहीं समा रहे हैं आपके अशार.. प्रभवित हुआ इससे
ReplyDeleteगुजारिश ,इल्तजा,
मिन्नत है ,भगवन ।
जरा लम्बी तो दे दो
सभी पैरों को चादर॥
मैंने तो कभी चादर लम्बी करने की भी दुआ नहीं माँगी. अपनी बस इतनी मिन्नत, गुज़ारिश रही
और ज़ियादा मुझे दरकार नहीं है लेकिन,
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे!
ajay ji -bhagvan chahe kitni bhi chadar lambi kar de manav ki ichchhaon ke samaksh use chota hi rahne hai .badhiya abhivyakti .shubhkamnaye.
ReplyDeletebehtreen prastuti .......
ReplyDeleteमेरी मासूमियत का फायदा
ReplyDeleteसबको मिला है ।
मुझे सबने बना डाला
हर इक इल्जाम का दर ॥
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दुनिया की रीत ही यही है ...शुक्रिया
वो लम्हे प्यार के
ReplyDeleteजिसमें सजा लेते थे सपने ।
बिखर जाते थे पल में ,
तुम्हारा साथ खोकर ...
अजय जी ... विरह की प्यास नज़र आ रही है ... बेहतरीन लिखा है .. दिल के ज़ज्बात निकल कर सामने आ रहे हैं ...
इधर मैं भी हूँ तन्हाँ,उधर तुम भी अकेली ,
ReplyDeleteचांदनी जल रही है ,बहुत ठंडा है बिस्तर !
अजय जी ,बहुत प्यारी ग़ज़ल कही आपने ,
खूब समां बाँधा है ! बहुत बधाई !
बाकी सब ठीक है लेकिन प्यार मे भगवान से डरना बिलकुल ज़रूरी नही है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteदिल के ज़ज्बात निकल कर सामने आ रहे हैं|
ReplyDeleteलाजवाब...
bahut sundar
ReplyDeleteयादों की खूबसूरत अभिव्यक्ति करने में कामयाब रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteअजय जी,
ReplyDeleteइस शेर ने तो दिल को छू लिया ,
मेरी मासूमियत का फायदा सबको मिला है ,
मुझे सबने बना डाला हर एक इलज़ाम का घर !
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
achchha likhte hain aap ... likhte rahiye
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना ! भगवान् से प्रार्थना है कि नया साल आप सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
मैं यूं ही बेमानी हूँ
ReplyDeleteफ़कत तुम्हारा होकर......
नया अनुभव !