Sunday, January 6, 2013

--------"वो"---------(अजय की 'गठरी' )


जीवन की आपाधापी में ,कोई मुझसे मिला अनजाना सा |
उसकी आँखें , उसकी वो अदा ,उसका चेहरा पहचाना सा ||

वो थोड़ा सा शरमाया भी
देखा मुझको ,मुस्काया भी
मुस्कान लगा मुझको जैसे
कुछ फूलों का खिल जाना सा ||

आँखों में उसके राज नया
बातों का इक अंदाज नया
आँखों में अपनापन देखा
अंदाज लगा पहचाना सा ||

वो ऐसे ही हर बार मिला
जैसे की , पहली बार मिला
हर बार लगा अनजाना सा
पर आज लगा पहचाना सा ||
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गठरी पर अजय कुमार
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6 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

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  2. जीवन में नयापन बनाए रखना जरूरी है ... चाहे कोई अंजाना हो या पहचाना ....

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  3. वाह ... बेहतरीन

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  4. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    वो ऐसे ही हर बार मिला
    जैसे की , पहली बार मिला
    हर बार लगा अनजाना सा
    पर आज लगा पहचाना सा

    बहुत सुंदर...
    आदरणीय अजय कुमार जी !
    ख़ूबसूरत रचना !


    हार्दिक मंगलकामनाएं …
    लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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