तुमको कुछ बात बताना था
इस दिल का हाल सुनाना था
क्या क्या गुजरी बतलाना था
तुम चले गये तुम्हे जाना था ।
कभी सफल रहे , कभी विफल रहे
कभी दहल गये , कभी अटल रहे
क्या क्या झेला बतलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
खेतों में हरियाली होगी
अब देश में खुशहाली होगी
यूं ही दिल को बहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
बहुतों को मिला थोड़ा थोड़ा
फंस गया अकेला मधु कोड़ा
इसका पर्दा सरकाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी
कुछ कड़वी सी कुछ तीखी सी
जीवन का स्वाद चखाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
144. बिपिनचंद्र पाल
12 hours ago
51 comments:
बहुतो को मिला थोड़ा थोड़ा
फंसा सिर्फ एक मधुकोड़ा
इसका पर्दा सरकाना था
ऐ साल तुम गए , तुम्हे जाना था
बहुत खूब अजय जी !
तुम्हे जाना था तुम चले गये .....वाह यह लिखने
का नया फार्मेट अच्छा लगा ....बस लिखते रहें ,नया अंदाज
तो मिलता है ....
बहुत बढ़िया रचना अजय जी ..धन्यवाद
nice one to give salute to 2009 ""tumeh jana tha tum chale gaye" and fansh gaya madhu koda"
wish u very very happy new year.
rgds
alok srivastava
nokia
bahut shi aaklan purane sal ka .
खेतों में हरियाली होगी
अब देश में खुशहाली होगी
यूं ही दिल को बहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
fir bhi ashavan hai .
दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
कविता का प्रवाह बहुत अच्छा है। संदेश और प्रेरणा देती रचना पढ़ कर मन को ही नहीं दिल को भी सुकून मिला।
ajay ji beete saal ke liye bahut badhiya nazm... naya andaj... naya kalewar... naya tarika... hasya ke saath gambhirta ka put.. achha laga ... shubhkaamna !
मैं काफी दिनों से गठरी देखने की सोच रही थी पर सफल नहीं हो पा रही थी ,आज पहुँच ही गयी मैं गठरी के पास ,अगर आप मनोरंजन चैनल से जुड़े हैं तो कभी कपिलवस्तु महोत्सव को भी कवर करें
ये बहुत अच्छी रचना लिखी है आपने
अजमल कसाब वाले पैरे का तो जवाब नहीं
क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था ..
सच कहा .........बहुत से सवाल छोड़ गया है बीता साल ........ शायद आने वाला साल इन सब के जवाब दे सके ........ अच्छी रचना है ..........
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
बहुतों को मिला थोड़ा थोड़ा
फंस गया अकेला मधु कोड़ा
बहुत सही कहा , अजय कुमार जी।
शानदार रचना।
अजय जी गए साल का तराना इस साल के तराने के अलफ़ाज़ न बने ये कामना है !
सटीक सुंदर लेख , पंक्ति से पंक्ति जुडती सी !!!
बढ़िया रचना,बहुत खूब,शानदार
दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
वाह और मधु कोडा कसाब इन के बारे मे भी बहुत सटीक अभिव्यक्ति है बधाई इस रचना के लिये और नये साल की भी शुभकामनायें
बहुत सुन्दर......अच्छा कटाक्ष है......सोते हुओं को जगती रचना...बधाई
Ajay sahab
"...क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब ..." bahut sahi farmaya.
Apki kavita sangraha bahut hee achha hai. Tippani ke liye bhi tnx...Keep smiling :)
रचना
अच्छी
मन की भावना
सच्ची।
nice poetry.
बहुत बढ़िया रचना है।बधाइ।
दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
सही कहा आपने, सबने मिलकर मधु पिया पर कोड़ा बरसा सिर्फ मधु कोड़ा पर ।
very nice.
Thank you!
प्रिय अजय जी,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो कि आप मेरे ब्लॉग पे आगमन किये...मैं अभी MCA कि तैयारी कर रहा हूँ कानपुर में तो समय कि अति कमी होने के कारण ज्यादा ब्लॉग नहीं पढ़ पा रहा हूँ बस कभी कभी मित्र लोग कविता दे देते हैं तो उन्हें ब्लॉग पर पोस्ट कर देता हूँ...हिंदी से अति लगाव है...जब समय होगा तो हिंदी के लिए कुछ करने का इरादा है...और वो कुछ बड़ा ही होगा...
धन्यवाद...
Bahut Khoob !
Apko Nav-varsh ki Shubhkamnayen.
अपनी बात आपके अन्दाज मे सुन करके अच्छा लगा..
.
शेष फिर
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
ब्लॉग पर सुध1र कर लिया गया है..:-)धन्यवाद ...
आप के काम और आपके एकाकार होने का प्रमाण देती येे कविता..अच्छी कविता.
achhi rachna ke liye dhanyawaad......
bahaut accha ajay g bahaut hi accha
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
मित्रता की गठरी में भरी दी हैं नव वर्ष की असीम खुशियाँ ,प्रगति -उन्नति की सौगाते .बधाई .
लेखन मे दम है .
बहुतों को मिला थोड़ा थोड़ा
फंस गया अकेला मधु कोड़ा
इसका पर्दा सरकाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
वाह भाई आपकी ये पढ़ते हुए जो आनंद आया की मत पूछो!!! एक ले और ताल में पढ़ा !!!
अजय जी, मेरे ब्लग पर पधारने का, सुझाव देने का बहुत-बहुत शुक्रिया। तकनीकी मामलों में भी अनुभवहीन होने के कारण अभी बहुत कुछ सीखना है, आशा है सहयोग मिलता रहेगा। धन्यवाद।
gaye saal ka tarana.
aapko bhi tha yun gana.
bahut achchhe ajay bhai,
aap khoob naam kamana..
क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था ..
बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई ।
TUM CHALE GAYE ,TUMHEN JANA THA ?PATA HAI, PHIR BHI JANE KA DARD.COMMENT KARNA BHI EK PROCESS HAI,VERNA COMMMENTS KARANA ASAAN NAHI HAI ,AAPKI RACHNAON PR,
'LIKHA THA NASEEB MAI HONA, PADOSI KISI SAHANSHAH KA .....'MERE LIYE TOH ITNA HI KAFI HAI KI AAPKI RACHNAYEN PADNE KO MIL RAHI HAIN... SAMAY KAHAN SE CHURATE HO SIR ?
दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था..बहुत बढ़िया;;
बहुत सही कहा , अजय कुमार जी।
शानदार रचना।
क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
nice
क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था
nice
acha likha ajay ji....
अजयजी, आपकी निम्न पंक्तियां भारत के आम नेताओं का हिसाब किताब उजागर करती हैं-
बहुतों को मिला थोडा थोडा,
फ़ंस गया अकेला मधुकोडा।
बढिया रचना के लिये बधाई!आभार।
aapkii shubhkamnao ke liye dhanyawad..rachna acchi likhi hai appne
bahut khub. shandar tukbandi............
इनको चलने की बीमारी हो गयी है
चले जाते हैं हमेशा !
अच्छी रचना।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
तुम चले गये तुम्हे जाना था
हम को कितना कुछ सुनाना था ।
इस बहाने देश की राजनीतिक आर्थिक नेतिक स्थिती का खूब जा़यजा़ लिया है ।
खूब
काश की गुजरे साल में हम जो न कर पाए.. वो सब हो जाए ...
बहुतो को मिला थोड़ा थोड़ा
फंसा सिर्फ एक मधुकोड़ा
बहुत खूब !!
bahut hi saral bhasha me bhut gehri baatein kari hai aapne ajay ji....badhaii..!!
beeta kal kyo yad karen ,aane vale kal ko khub sajaye.A nice composition.
asha
बहुत ही अर्थपूर्ण, तीक्ष्ण , अत्यधिक सुन्दर रचना..
"ab peeche ki baat bhoolkar hum aage ki soch rahe hain ,attet ki ret me safalta ke padchinhon ko khoj rahe hain" .naye saal par likhi ye rachna behad behatreen hai mujhe abhi devnagri me pratikriya kaise likhani hai ye nahi pata isliye is tarah likha aage devnagri me likhane ka prayaas karunga hindi blog jagat me aapke dwara mere swagat hetu aapne mere blog par jo sandesh likha uske liye main tahe dil se aapka aabhari hoon aasha karta hoon ki vicharon aur bhaavon ka ye pravaah nirantar bahta rahega
likhte rahie ! prernadayak hai.
aadrniy ajay kumar ji aadaab arz he aapkaa blog pdhaa ab bs pdhte rrhne ko ji chaahtaa he. akhtar khan akela kota rajasthan
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