Thursday, November 6, 2014

लोहा सिंह ,खदेरन की माई और फाटक बाबा (अजय की गठरी )

                                                     (74)

वर्षो पहले शायद छठी या सातवीं कक्षा में था ,एक किताब पढ़ी थी -लोहा सिंह | भोजपुरी भाषा में लिखित पुस्तक के लेखक थे श्री रामेश्वर सिंह कश्यप | बहुत दिनों से इस पुस्तक की तलाश कर रहा हूँ लेकिन असफल ही रहा |यु ट्यूब पर दो वृत्तांत ही मिले , नेट पर भी इक्का दुक्का स्थानों पर थोड़ा जिक्र मिला ,उन्हीं थोड़ी बहुत प्राप्त सूचनाओ और यादों के सहारे कुछ लिखने की कोशिश की है |
लोहा सिंह जो की एक रिटायर्ड फौजी है ,अपनी पत्नी को खदेरन की माई कह कर सम्बोधित करता है , एक पाठक जी हैं जिन्हें फाटक बाबा कहा जाता है | फाटक बाबा घर में प्रवेश करते समय -जय हो जजमान का उद्घोष करते हैं और लोहा सिंह से मित्रवत सम्बन्ध रखते हैं |खदेरन , लोहा सिंह का पुत्र है ,और खदेरन के मामा हैं बुलाकी | लोहा सिंह कभी कभी खदेरन की माई को , खदेरन का मदर कहकर पुकारते हैं |
खदेरन की माई का तकिया कलाम है . अ--मार बढ़नी रे -----
लोहा सिंह अपनी बातचीत में अक्सर 'काबुल का मोर्चा पर ' का जुमला जोड़ते रहते हैं |
किसी प्रसंग के समाप्त होने पर , फाटक बाबा ,लोहा सिंह से मुखातिब होकर अवश्य कहते हैं -" को नहिं जानत है जग में , संकट मोचन नाम तिहारो "
इसी पुस्तक से कुछ  प्रसंग----
1- खदेरन के मदर ,जानत बाड़ू ,मेहरारू के मोंछ  काहे ना होला- आवर मरद के कपार के बार काहे झर जाला , 
ता सुन,- मेहरारू लोग जबान से काम लेला ,एहसे मोंछ झर जाला। अउर मरद लोग , दिमाग से काम लेला ,एहसे कपार के बार झर जाला 
 2-लोहा सिंह , खदेरन की माई से कहते हैं -
 " तुम हुकुम देता है जैसे फौज का सरजंट है , ये नहीँ बूझा के हम लफ़्टंट का लफ़्टंट है
   मेम , मेमिन तुम नहीँ , तुम है जनानी गांव की  ,हो के मेहरारू भला क्यों मर्द से रपटंट है
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कुछ रचनाएँ धरोहर होती हैं और इन्हें आनेवाली पीढ़ियों तक पहुंचते रहना चाहिए |मेरे पास इसकी कुछ धुंधली सी याद ही है | समस्त साहित्य प्रेमियों को यह सहज रूप से उपलब्ध हो इसलिए मेरा निवेदन इस ब्लॉग के माध्यम से है कि, लोहा सिंह नाटक , पुस्तक अथवा रिकॉर्डिंग , कहाँ से और कैसे प्राप्त हो सकती है , ऐसी जानकारी किसी के पास है तो साझा करने का कष्ट करें |
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                       गठरी पर अजय कुमार
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Thursday, July 17, 2014

पुत्र "आयुष" का जन्मदिन ---एक पैगाम ,किशोर वय बच्चों के नाम (अजय की गठरी )

                         ( 73 )
कुछ लोग बड़े ---होते हैं ,कुछ लोग बड़े --हो जाते हैं
कुछ लोग बड़े --बना दिये जाते हैं ,कुछ लोग बड़े --बताये जाते हैं 


कुछ लोगों को ---बड़ा दिखने का, होता है मानसिक रोग |
अपने आस-पास रखते हैं , छोटे लोग ||
अपने से बड़ों को , करते हैं नापसंद |
क्षुद्र मानसिकता वालों के साथ ,रहते हैं एक दायरे में बंद ||
ऐसा करना उनकी मजबूरी है|

बड़े हों न हों ------,दिखना जरूरी है ||
क्योंकि ---जो जैसा दिखता है ,वैसा माना जाता है |
इस दौर का व्यक्ति
आतंरिक नहीं --बाह्य व्यक्तित्व से पहचाना जाता है ||


बेटे --हम कलयुग में निवास करते हैं  |
लोग दूसरों की खबरें अपने पास रखते हैं ||
अक्सर दूसरों के प्रगति-पथ पर खड़े हो जाते हैं |
किसी को नीचा दिखाकर ,क्षण भर को ,बड़े हो जाते हैं ||
ऐसे लोग ----,बड़े जरूर दिखाई पड़ते हैं |
लेकिन , ये --अपनी अंतरात्मा से रोज लड़ते हैं || 


बेटे --अब तुम बड़े हो रहे हो
अच्छा लगेगा ,तुम्हारा बड़े  हो जाना |
कितने भी बड़े हो जाओ ---
वक्त पर अपनो के साथ ,जरूर खड़े हो जाना || 

सुख के अलावा ,दुःख में भी साथ निभाओगे |
तुम वास्तव में --बड़े हो जाओगे ||

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                गठरी पर अजय कुमार
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Sunday, April 20, 2014

चुनावी मौसम में --चुनावी पैरोडी (अजय की गठरी )


                                                         (72)
पैरोडी की तर्ज है --फ़िल्म 'गोपी' से
"रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा
हंस चुनेगा दान तिनका ,कौव्वा मोती खायेगा "
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फिर चुनाव का मौसम आया ,सब नेता चिल्लायेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||

बेटे को नौकरी मिलेगी ,बेटी की होगी शादी |
कर्जे से भी मुक्ति मिलेगी ,मंहगाई से आजादी ||
थोड़े से पैसों में ,घर का ,पूरा राशन आयेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||

अपराधी जेलों में होंगे .फिर नैतिकता आयेगी |
उंच नीच का भेद मिटेगा ,सामाजिकता छायेगी || 
हाथ में ,कोई ,लाठी लेकर ,भैंस न ले जा पायेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||

अब ना झूठा वादा होगा ,सच होंगे सारे सपने |
धरती का सिरमौर बनायें , प्यारे देश को हम अपने || 
अब विदेश में देश का पैसा ,कोई ना ले जा पायेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||

इंतज़ार है चाँद दिनों का ,राम राज अब आयेगा |
हर किसान अब फसल का अपने ,दाम भी पूरा पायेगा || 
भूख कर्ज से ,व्याकुल कोई ,फांसी नहीं लगायेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||

अब विकास की नदी बहेगी , देश के कोने कोने में | 
अब प्रयास हो ,सभी योजना ,समय से पूरा होने में || 
नहर ,सड़क,बिजली ,शिक्षा ,सब ,गाँव गाँव तक आयेगा |
भोला भाला आम आदमी ,फिर कुछ आस लगायेगा ||
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---------गठरी पर अजय कुमार -----
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Sunday, March 2, 2014

मेरी बेटी , परायी हो गयी है -- ( अजय की गठरी )

                                           (71 )

खेलती थी ,मेरी गोदी में अक्सर |
चहकती थी ,जो घर आँगन में दिनभर ||
उसकी शादी , विदाई हो गयी है |
मेरी बेटी , परायी हो गयी है ||

मेरी तितली , मेरी नन्ही सी चिड़िया |
टहलती थी , लिए हाथों में गुड़िया ||
आँख मेरी , जुलाई हो गयी है |
मेरी बेटी , परायी हो गयी है ||


बहुत व्याकुल , ह्रदय था ,कैसे कुछ बोल देता |
सिसक कर , मैं भी रोता ,अगर मुंह खोल देता ||
यूँ ही छुप छुप , रुलाई हो गयी है |
मेरी बेटी , परायी हो गयी है ||  

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डेढ़ साल के अंदर दो भतीजियों की शादी होने पर ये उदगार निकले 
---------गठरी पर अजय कुमार----------
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