Wednesday, January 27, 2010

हे भाग्य विधाता !!

लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

74 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सुन्दर रचना अजय जी, हालात पर करारी चोट करती !

दिगम्बर नासवा said...

मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

अजय जी ....... सारे छन्द सचाई बयान कर रहे हैं ...... कड़वी सचाई, सटीक हैं आज के हालात का जीटा जागता चित्रण किया है आपने ......... संविधान और गणतंत्र बस मज़ाक बन कर रह गया है ......... आपका अंतिम छन्द ... एम. एफ. हुसैन वाला तो दिल में बैठ गया है ..... बहुत ही कमाल का लेखन है ............

VIMAL VERMA said...

पंक्ति से पंक्ति मिल रही है...वर्तमान माहौल पर अच्छा प्रहार है..पर हुसैन का ज़िक्र थोड़ा अजीब लगता है.....हुसैन ही तो सिर्फ़ हिन्दू -मुस्लिम एकता को तोड़ने वाले व्यक्ति नहीं है...इस कार्य में तो बहुत से लोग शामिल है हुसैन का ज़िक्र थोड़ा सरलीकरण लग रहा है... बाकी रचना तो हमेशा की तरह उत्तम है।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर रचना...

संहिता said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी हू । सुन्दर रचना है । ब्लॉग पर लगा तिरंगा.. मन को भा गया ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर रचना...”

संजय भास्‍कर said...

happy republic day.......

डॉ महेश सिन्हा said...

सही चित्रण

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

ajay ji dil ko chhuti hui rachna
जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता
saadar
praveen pathik
997196908

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर और सार्थक रचना ।
हालात को सच्चाई से बयाँ करती ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छा कटाक्ष करती सुन्दर प्रस्तुति.....

निर्मला कपिला said...

मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
अजय जी के हालात पर गहरी चोट सटीक अभिव्यक्ति शुभकामनायें

सुभाष चन्द्र कुशवाहा said...

भाई, मिल कर खुशी हुई । आप का करीबी भी हूं . कभी सिध्दार्थनगर में तैनात भी रहा हूं ।
कृपया पूर्वाचल की संस्कृति को जानने के लिए www.lokrang.in भी देखें ।
सुभाष चन्द्र कुशवाहा

Pramod kumar jha said...

dil ki aawaz ko shabdo mein dhala hai..aapne Ajay ji.. dil kahi na kahi awam se bhi jurta hai...aapka dhanyavad bhi karna chata hoon jo aapne mere blog par aakar mera hausla badhaya... dhanyavad dil..se.

मनोज कुमार said...

ज़िंदगी के सरोकारो के संघर्ष को नए अर्थों में बयान करने की कोशिश

Yogesh Verma Swapn said...

bahut badhia rachna samyik , karara vyangya. badhaai.

Dev said...

bahut badhiya ....mazooda halat par prakash dala hai is rachna ke dwara ......

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! बहुत बढिया लगी ये रचना!!
धन्यवाद्!!!

Yashwant Mehta "Yash" said...

बहुत बढ़िया कविता

देवेन्द्र पाण्डेय said...

छंद-बद्ध सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
जन समस्याओं पर कविताई जरूरी है.

दीपक 'मशाल' said...

वाह अजय सर, वैसे तो पूरा गीत ही उम्दा है लेकिन हुसैन के बारे में तो दिल की बात कह डाली... दुःख है कि यू. के. आ गया और प्रतियाँ सीमित होने की वजह से आपको भेज नहीं पाया......
जय हिंद...

Mithilesh dubey said...

अजय भईया बहुत खूब कहा आपने, आपकी रचना तो सिधे दिल तक उतर गयी , लाजवाब ।

Mithilesh dubey said...

सही है ।

BAD FAITH said...

भाग्य विधाता से ये सवाल बेमानी है, जब कि हम सब कमोबेस गुनाह्गार है.सुन्दर रचना.

Apanatva said...

aaj ke halaat ko pratibimbit kartee hai aap kee ye sunder rachana.......Badhai

Pushpendra Singh "Pushp" said...

लोकतंत्र पर अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut sacchayi he apki gazel me..
aaj ki rajniti aur kanoon ki yahi dasha hai.badhayi.

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया है आपने सच्‍चाई को, बधाई ।

Shashank Pal said...

बहुत बहुत धन्यबाद अजय जी, आपने मेरा उत्साह वर्धन किया। आपकी रचना का जवाब नही।

Sagar said...

bahut achha sadhuwad,,

कविता रावत said...

है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

Bilkul sahi baat kahi aapne. Yahi sub kuch to chal raha hai.

Urmi said...

बहुत ही खूबसूरती से आपने सच्चाई का ज़िक्र किया है! उम्दा रचना!

dipayan said...

बहुत खूबी से हालात से वाकिफ़ करवाया । बधाई हो ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूबी से हालात से वाकिफ़ करवाया । बधाई हो ।

sudhanshu chouhan said...

सच कहें, तो यही तो लोकतंत्र है।
जब है जनता ख़ामोश तो पड़ेगा किसपर बोझ।
जुल्म करने वालों से ज़्यादा दोषी है जुल्म सहने वाला। इसलिए आपकी क्रांतिकारी कविता तो बाबा नागार्जुन की याद दिलाती है।

Chakreshhar Singh Surya said...

लोकतंत्र अगर मानव होता तो आपके ज़रिये वो अपनी बात ज़रूर कहता.

kathan said...

sir hume is tarah ki rachna likhna pad rha he ye bidambna hi he . pr apne is mudde ko khubsurti ke saath ubhara he .jo kam se kam thodi rahat to deta he . dhanyvad.......

AKHRAN DA VANZARA said...

बहुत करारा प्रश्न है ...
लगता है इस् प्रश्न का उत्तर शायद अब भाग्यविधाता के पास भी नही होगा ....

यह भी महान भारत की विड्म्ब्ना है ....

फिर भी आओ जय हो करते रहे....

सुन्दर कविता के लिये बधाई सवीकार करे...

----- राकेश वर्मा

ज्योति सिंह said...

लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता
bahut hi shaandaar rahi rachna ,behad pasand aai .

तिलक राज कपूर said...

अजय भाई,
लोकतॉंत्रिक गणतंत्र का विकास एक सतत् प्रक्रिया है। अभी हमारा गणतंत्र, गणतंत्र तो है लेकिन अपरिपक्‍व है कहूँ तो अच्‍छा-खासा विवाद खड़ा हो जायेगा। गणतंत्र के विकास क्रम में जनजागृति का महत्‍व अविवादित है। वर्तमान जागृति का जो स्‍तर है उसके मुताबिक सरकारें चुनी जाती हैं और काम करती हैं। एक शासकीय सेवक के रूप में मेरा अनुभव रहा है कि नीति के स्‍तर पर कोई दोष नहीं होता, दोष होता है क्रियान्‍वयन के स्‍तर पर जहॉं व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ तथा और बहुत कुछ होता है जो कभी-कभी गणतंत्र को ऐसी स्थिति में ढकेल रहा होता है जो गणतंत्र के लिये अपमानजनक होती हैं।
इस स्थिति को बदलने में हमारी जो भूमिका हो सकती है उसे केन्‍द्र में रखकर हमारे प्रयास निरंतर जारी रहें तो एक दिन ऐसा अवश्‍य आयेगा जब यही गणतंत्र अपेक्षित सम्‍मान को प्राप्‍त करेगा।

Akhilesh Soni said...

बहुत ही बेहतरीन रचना है आपकी सच ही तो है....बधाई...मेरे ब्लॉग का गीत भी देखिएगा कुछ सच्चाई मैंने भी बयान करने की कोशिश की है शायद आपको पसंद आये.

Raj said...

लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

bahut achhi kavita.

Loktantra ka apman achhi baat nahi hai. Iska apman hamen aage nahi, prantu peechhe dhkel dega.

Keep it up.

पूनम श्रीवास्तव said...

ajay ji aapki rachana ki saari ki saari hi panktiya, hi aaj ke samaaj ki kadawi sachchaiyon se ham sabko roobaroo karawaati hai.
poonam

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत देर हुई आने में लेकिन पढने के बाद बार-बार पढा- कई बार पढा इस सार्थक और तल्ख रचना को.

Unknown said...

सुंदर रचना के लिए बधाई अजय जी

pragya said...

सही कहा है..बेचारा लोकतंत्र

Parul kanani said...

vakai shabdon mein bhaar hai..bahut badhiya sir!

Ashish (Ashu) said...

एक सत्य आप ने कितने सरल तरीके से लिख दिया
जोरदार रचना
बहुत बहुत आभार.

Asha Joglekar said...

जिसके हाथ में मोटी लाढी भैंस वही हांक ले जाता
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ।
अजय जी गण तंत्र दिवस पर आपकी ये कविता बहुत भायी । यथार्थ का ही वर्णन है आपके इस चित्रण में ।

Unknown said...

जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥

सर्वत एम० said...

लोकतंत्र का देश में असली रूप क्या है, आपने चित्रित कर दिया. दिन-प्रतिदिन आप के लेखन में न सिर्फ विकास हो रहा है बल्कि आप ऐसे ज्वलंत मुद्दे उठा रहे है जिन्हें कलमबद्ध करना आज की जरूरत है. बेहद सफल प्रस्तुति.

मेरे भाव said...

ajay ji, lajawab kavita hai. aapki rachna desh prem ke bhavo se labalab hai. nishchay hi padne valo ko atamchintan ke liye badhya kar degi

Kuldeep Saini said...

bahut khoob sabki pol khol di aapne to

Urmi said...

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

Akhilesh pal blog said...

bahoot achha

पी.एस .भाकुनी said...

sir main aapki feeling ko samajh raha hun, lakin dukh is baat ka hai ki aisi feeling aapki hai, meri bhi hai lakin uski feeling kuch or hi hai,jo in sab ke liye jimmedaar hai...overalll so nice....

Unknown said...

इससे बेहतर क्या हो सकता है,,आपने तो मुझे खुश कर दिया,कहने के तो बहुत कुछ हैं,लेकिन कितना कहूं

Ashish (Ashu) said...

वाह! सुंदर पोस्ट.
हर बार बेहतरीन लिखते हैं आप ।

ज्योति सिंह said...

सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥ek katu satya bayan kar gaye aap apni rachna me ,sundar .

Tabish Husain said...

ajay ji sundar rachna... pyar se khinchaai...

Rahul Priyadarshi 'MISHRA' said...

mujhe aisa laga jaise meri soch ko itna sundar roop kisne de diya.......sundar rachna,sateek sandesh.
badhai ho shriman.

Akhilesh pal blog said...

aap ka blog dikhayee nahi pad raha sirf fallow karane par pad sakate hai keya karan hai

Neeraj Kumar said...

bahut khoob...

Tej said...

bahaut khub ajay ji
aap ko maine aapna guru mana

Tej said...

bahaut khub ajay ji
aap ko maine aapna guru mana

पुनीत कुमार राय said...

sabdo se jyada gahri lagi bhawanaye.kadwa sach batane ke liye SADHUVAAD


par kya kare jina isi ka naam hai?

Neeraj Kumar said...

बधाईयाँ होली की...मन-तन और जीवन हो जाये रंगीन...

दीपक 'मशाल' said...

इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)

होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

BADRI SANKAR DASH said...

bahat behetarin lekh he.. sir, bahat bahat achhi lekh he...

Anita kumar said...

जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

बहुत खूब

ankush963 said...

Ajay ji, apki rachna 'Bhagya Vidhata' ne to apratyaksh roop se hi sahi M.F. Hussain ko hindustan se bahar hi kar diya,
iske liye aap dhanyawad k patra hain.

-Surendra Singh Garhwali

निर्झर'नीर said...

सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता

क्या लिखा है आपने ..जवाब नहीं लाजवाब ..
आपका आभार आप ब्लॉग तक आये .

honesty project democracy said...

PRIY AJAY JI
Aapki jo byatha aur dukh hai wasme aap apne aap ko kabhi akela na samjhen.Wah din aab door nahi jab sahi mayne main rawan ka badh hoga chahe wah prdhan mantri ki kurshi par baitha ho ya krishi mantri ke kursi par ya kishi aur pad par baith kar aam logon ko satane aur unpar atyachar karne ka kam kar raha ho.Bus aap ek antim ahinsak aur sarthak sangharsh ke liye apne aap ko dus rupaiya aur har mahine ek din dene ke liye khud taiyar rahen aur iske liye apne aas parosh ke samaj ko bhi ekjut karne ka pryas poori takat se karen.Aapko hamari sahayata kabhi chahiye to hamare mobile pe kabhi bhi fhon karen.EK SACHCHE NAGRIK KI SAHAYATA AUR SURAKSHA HI EK SACHCHE NAGRIK KI PAHCHAN HAI.

संजय पाराशर said...

hridaya ki bat hridaya ko chhu gai.