Monday, January 3, 2011

सूचना एवं संचार तकनीक से महरूम रेलवे ??(अजय की गठरी)

सबसे पहले तो आप सभी को नये वर्ष की शुभकामनायें । अभी कुछ दिनों के लिये लखनऊ और सिद्धार्थनगर गया था ,कल शाम को लौटा हूं । गुर्जर आन्दोलन की क्रिपा से हमारी ट्रेन (अवध एक्सप्रेस) सिर्फ ३२ घंटा लेट हुई ।
अब आते हैं असली मुद्दे पर । संचार क्रांति के इस दौर में भी रेलवे अभी भी पूर्ण सूचना देने में बेबस और लाचार दिखने की कोशिश करता है। जरा निम्न बातों पर भी गौर करें-
१-ट्रेन लेट होने की जानकारी टुकड़ों में दी जाती है
२-ट्रेन किस स्टेशन पर है ,वहां क्यों रुकी है नहीं बताया जाता
३-ट्रेन अपने मूल स्टेशन से चल चुकी है या नहीं

 इन बातों के अलावा सेवा की कमी तो हद से बढ़कर है -
१-जनरल के असंख्य टिकट बेचते हैं
२-जनरल के यात्री पैसा देकर टिकट लेते हैं ,फिर पुलिस तथा कुली को पैसा देकर सीट का जुगाड़ करते हैं ,कभी कभी डंडा भी खाते हैं
३-एसी के यात्री पैसा ज्यादा देते हैं लेकिन कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं, यदि प्लेन कैंसिल अथवा बहुत लेट हो तो संबंधित एयरलाइंस उनका ख्याल रखने की पूरी कोशिश करते हैं ,रेलवे में ऐसा नहीं है ।
३-हम एसी वेटिंग रूम में थे ,लेकिन उसका टायलेट सार्वजनिक था ,कोई पूछताछ नहीं ।

अब ट्रेन के अंदर की बात -
१-ट्रेन के स्टाफ को ही नहीं पता था कि परिवर्तित रूट क्या है ,अगला स्टेशन कौन सा है ???
२-ट्रेन अचानक क्यों रुकी है
३-क्या ट्रेन में उद्घोषणा नही की जानी चाहिये

और अंत मे मजेदार बात यह है कि रेलवे को तो कुछ नहीं पता था ,लेकिन बहुत से यात्रियों को इनमें से ज्यादातर जानकारी अपने मोबाइल के माध्यम से पता थीं ।
एक बार फिर से आप सब को नये वर्ष में स्वस्थ और सुंदर जीवन की मंगलकामनायें ।
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अजय कुमार
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6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

भारतीय रेल आपका स्वागत करता है ... अजय जी ये हाल सब जगह है ... मैं कल ही देल्ली एअरपोर्ट पर था ... वहां भी बिना बताये फ्लाईट कैंसल हो रहीं थीं .... आपको नया साल मुबारक ..

निर्मला कपिला said...

मेरा देश महान। यही तो है इसकी शान। सब जगह यही हाल है कौन पूछता है। नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।

ZEAL said...

निसंदेह सुधार की गुंजाइश है रेल विभाग में। शायाद नए साल में कुछ बेहतर हो जाए।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

काश, तकनीक के पंख रेलवे को भी लग पाते।

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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

रेलवे को अपने यात्रियों की कितनी फ़िक्र है इसका अंदाज़ा वही लगा सकता है जो भुक्तभोगी हो ! सूचना क्रांति के इस दौर में रेलवे का स्वरुप कुछ और ही होना चाहिए था !मगर ....
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Satish Saxena said...

बढ़िया अनूठे सुझाव !मगर सुनेगा कौन दोस्त ??? शुभकामनायें !