-५२-
ये कैसा दौर आया है , हुआ फैशन से कन्फ्युजन ।
जिसे हम नर समझते थे , असल में वो तो मादा है ॥
मुहल्ले की हसीना है , वो जिसकी आज है शादी ।
झूमकर मैने भी नाचा , मगर अफसोस ज्यादा है ॥
ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
सामने पत्नियों के , सारे पतियों की हवा निकली ।
जो खुद को शेर कहता है , वही खरगोश ज्यादा है ॥
कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥
इलेक्शन का टिकट पक्का है मेरा , कटेगा कैसे ?
गुनाहों से भरा दामन , शराफत का लबादा है ॥
ये कैसा दौर आया है , हुआ फैशन से कन्फ्युजन ।
जिसे हम नर समझते थे , असल में वो तो मादा है ॥
मुहल्ले की हसीना है , वो जिसकी आज है शादी ।
झूमकर मैने भी नाचा , मगर अफसोस ज्यादा है ॥
ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
सामने पत्नियों के , सारे पतियों की हवा निकली ।
जो खुद को शेर कहता है , वही खरगोश ज्यादा है ॥
कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥
इलेक्शन का टिकट पक्का है मेरा , कटेगा कैसे ?
गुनाहों से भरा दामन , शराफत का लबादा है ॥
31 comments:
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
सुखी विवाहित जीवन का मन्त्र ।
शानदार ग़ज़ल है अजय कुमार जी ।
वाह अजी जी क्या खूब कहा
"कुंवारे थे तो अच्छा था ,
डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है ,
मगर सरदर्द ज्यादा है"॥
बधाई
"कुंवारे थे तो अच्छा था ,
डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है ,
मगर सरदर्द ज्यादा है"॥
yahin main bhi soch raha tha...apne likh di hamare dil ki baat...:)
par dil ki baat kabhi juban pe na aa jaye...bante bante baat kahin na bigar jaye:P
बेहद शानदार जितनी तारीफ़ की जाये कम है।
वाह ..बहुत खूब हर पंक्ति एक वजन के साथ ...बेहतरीन ।
हा हा!! बहुत बेहतरीन...
व्यथा से आरम्भ करते हुए व्यवस्था तक ले गए आप तो.. अजय जी बड़ी कीमती है ये गठरी!!
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
बहुत खूब,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥
fir bhi sabhi kahte hain ki shadi vah laddoo hai ki jo khaye pachhtaye jo n khaye vo bhi pachhtaye.
aapki kavita bahut sundar bhavon ko samete hai.achchhi lagi.
सामने पत्नियों के , सारे पतियों की हवा निकली ।
जो खुद को शेर कहता है , वही खरगोश ज्यादा है ॥
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
:):) बढ़िया गज़ल
ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥
आज तो गठरी में से एक से एक नायाब मोती निकले हैं। मज़ा आ गया पा(ढ़)कर।
ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
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कमाल कि ग़ज़ल है. इसी तो अपनी बगीची चर्चा मैं अवश्य स्थान दूंगा
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने !ये तो घर घर की कहानी है! शानदार और ज़बरदस्त रचना!
bahut sundar
yahi dard idhar bhi --
पैर बाहर अब निकलने लग पड़े | खींच के चादर जरा लम्बी करो ||
आप
पैर अपने मोड़ कर रखो तनिक, दूसरी चादर मिले, धीरज धरो ||
वो
आपके कम्बल से आती है महक ओढ़ कर पीते हुए घी क्यूँ चुआये ||
आप
रोज तिल का ताड़ तुम बेशक करो, कान पर अब जूं हमारे न रेंगाये ||
(अपनी टांग उघारिये आपहिं मरिये लाज)
पर -नोंक झोंक परसनल कहाँ रही--
वो
अपनी गरज तो बावली, दूजा नहीं दिखाय | अस्सी रूपया रोज का, पानी रहे बहाय ||
आप
हो बड़की शौकीन तुम, मलमल लहँगा पाय | मैट्रिक्स पार्लर घूमती, कौआ रही उड़ाय ||
वो
सींग काटकर के सदा, बछड़ों में घुस जात | फ़ोकट में दिन-रात जो, झूठे कलम घिसात ||
बस-बस बस --- आप
जीभ को तालु से लगा, गया छोड़ मैदान || कम्प्यूटर पर बैठ के, साफ़ बचाई जान ||
नोंक-झोंक के बाद--लौट के बुद्धू घर को आये
आप
सब कुछ बाहर छोड के लौटा तेरे पास |
भूखा तेरे प्यार का, डाल जरा सी घास ||
वो
घंटों से तू था किधर, रहा था दाने डाल ||
नहीं फंसी चिड़िया तभी, शाकाहारी ख्याल ||
आप
सांप नहीं हम हैं प्रिये, खायें मात्र हवा ||
ऊंट को जब-तब चाहिए, दारु-भोज-दवा ||
वो
नीति-नियम से पक रहा, बासी न बच जाय |
हो राशन बर्बाद क्यूँ , काहे कुक्कुर खाय ||
आप
नित कोल्हू के बैल सा, खटता आठो याम |
कीचड़ में टट्टू फंसा, होवे काम तमाम ||
नाच नाचता मैं रहूँ , पल्ला पकड़ा तोर |
गाढ़े के साथी तुम्ही, भूख मिटा दो मोर ||
वो
एक आँख से रो रहे, दूजी हंसती जाय |
करवट बैठे ऊंट उस, जो पहाड़ बतलाय ||
haahahhahaha
masttt........
mazaa aa gaya....
ghar me sher baahar khargosh....jab pahle se pata hai to hum bhhavi khargosh ye gustaakhi karte hi kyun hai............!!!!
यह एक संजीदी रचना है या हास्य या व्यंग्य या सबकुछ समझ में नहीं आ रहा, जो भी है बहुत सुन्दर है बधाई और धन्यवाद
हास्य का पुट लिए अच्छी रचना.......
सभी शेर जानदार.......
वाह अजय जी .. कुछ हास्य ... कुछ व्यंग कुछ सचाई लिए ... लाजवाब शेर कहे हैं सब ... बहुत बधाई ...
गुनाहो से भरा दामन है,शराफ़त का लबादा है।
very nice
अच्छा व्यंग.
सामने पत्नियों के , सारे पतियों की हवा निकली
जो खुद को शेर कहता है , वही खरगोश ज्यादा है
आप कह रहे है तो शायद ठीक ही होगा.
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥
सत्य...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
Sirjee aapki gathri to jadoo ki hai khulte hi har ghar ke patiyon ki pole khol ke rakh di.Bahut khoob
वाह क्या कहने।
बहुत सुंदर
वाह क्या कहने।
बहुत सुंदर
आपने अपनी 'गठरी'से अच्छे नमूने पेश किये हैं.
पढकर आनंद आ गया.
आपकी चुटकियाँ लाजबाब हैं.
पोस्ट का टायटल 'मेरा दिल ले गई वो,जिसका रूप सादा है' से तो हम यह पोस्ट आपके द्वारा आपकी पत्नी को ही समर्पित मानते हैं.आपका क्या कहना है?
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥
kya sunder likha hai bahut khub
badhai
rachana
Very nice creation !
प्रिय अजय जी -बहुत खूब -ये मेक अप -ये दिखावा काश ख़त्म हों सादगी सरलता भर जाये -
-जो हमें न्याय नहीं दिला सकते जोखिम से बचा नहीं सकते पेट नहीं भर सकते उस सरकार का रहना न रहना व्यर्थ ही है-जयचंद और कसाब पर नजर रखने की इनको फुर्सत कहाँ है ..
ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥
सुन्दर रचना - आभार
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
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