(66)
बात होती थी और बस बात ही होकर रह जाती थी ,लेकिन जहां चाह - वहाँ राह की तर्ज पर एक दिन बात बन ही गयी ,और फिर चार ऊर्जावान मित्रों की टोली , सपत्नीक ,मय बाल-बच्चों के कूच कर गयी --महाबलेश्वर और पंचगनी के लिए | ये तारीख थी २३ नवम्बर २०१२ की |
बात होती थी और बस बात ही होकर रह जाती थी ,लेकिन जहां चाह - वहाँ राह की तर्ज पर एक दिन बात बन ही गयी ,और फिर चार ऊर्जावान मित्रों की टोली , सपत्नीक ,मय बाल-बच्चों के कूच कर गयी --महाबलेश्वर और पंचगनी के लिए | ये तारीख थी २३ नवम्बर २०१२ की |
प्रस्थान के पहले रहने -खाने की व्यवस्था के लिए होटल के स्थान पर एक बंगला लिया गया ,जो बहुत ही सुविधाजनक और मितव्व्यता की दृष्टी से काफी अनुकूल रहा |इसमें ३ बेडरूम ,एक ड्राईंग रूम किचन और बड़ा सा कैम्पस था --मन को भानेवाला |
बाएं से -मैं ,विमल वर्मा जी ,संजय मिश्र जी और सरोज झा जी
( ऊपर के फोटो में हमारी पत्नियां भी इसी क्रम में बैठी हैं )
झूले और क्रिकेट का आनंद
आप की खुशी --हमारी खुशी
दिन में सूना है --रात को गुलजार था ( हम यहाँ बैठे थे )
( ऊपर के फोटो में हमारी पत्नियां भी इसी क्रम में बैठी हैं )
आप की खुशी --हमारी खुशी
दिन में सूना है --रात को गुलजार था ( हम यहाँ बैठे थे )
समुद्र तल से लगभग १४०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित महाबलेश्वर की दूरी मुम्बई से लगभग २५० कि.मी. है |२३ नवम्बर की सुबह हम ६ बजे मुम्बई से चलकर दोपहर १ बजे के आस पास पंचगनी पहुँच गए |
अगले दिन दोपहर में हमारी वापसी मुम्बई के लिए थी , तो इस कम समय में हमें काफी कुछ देख लेना था | चूंकी हमारे पास अपना वाहन मौजूद था तो कोई समस्या नहीं हुयी |
कुछ खाते रहो ---सुस्ताते रहो
ई है दूरबीन--देखो नजारा हसीन
एतना मोलभाव --घोड़ा भी फ्रस्टेट हो गया
चल मेरे घोड़े , टिक टिक टिक
पूर्वजों की सेवा
प्राकृतिक जल स्रोत
स्ट्राबेरी
बच्चों के उत्साह और हम सब की इच्छाशक्ति ने तो इसे और भी आसान कर दिया
जोश और जूनून के साथ ये दिन ख़त्म हुआ |
सांझ ढली --और हमारी टोली वापस चली
********************************************************************************
गठरी पर अजय कुमार
********************************************************************************
अगले दिन दोपहर में हमारी वापसी मुम्बई के लिए थी , तो इस कम समय में हमें काफी कुछ देख लेना था | चूंकी हमारे पास अपना वाहन मौजूद था तो कोई समस्या नहीं हुयी |
कुछ खाते रहो ---सुस्ताते रहो
ई है दूरबीन--देखो नजारा हसीन
एतना मोलभाव --घोड़ा भी फ्रस्टेट हो गया
चल मेरे घोड़े , टिक टिक टिक
पूर्वजों की सेवा
प्राकृतिक जल स्रोत
स्ट्राबेरी
बच्चों के उत्साह और हम सब की इच्छाशक्ति ने तो इसे और भी आसान कर दिया
जोश और जूनून के साथ ये दिन ख़त्म हुआ |
सांझ ढली --और हमारी टोली वापस चली
********************************************************************************
गठरी पर अजय कुमार
********************************************************************************
6 comments:
क्या बात है ! अजय जी, यादों अब तक आप संजो के रखे थे और तस्वीरें भी, फिर से फ़्लैश बैक की तरह इस सुखद यात्रा का दृश्य आँखों के सामने से गुज़र गये। पुरानी यादों के गुज़ारे हुये पलों को फिर से याद दिलाने के लिये आपको साधुवाद !!
खूबसूरत लम्हें.
वाह जी वाह ... भरपूर आनंद उठाया है आपने तो ... सुन्दर चित्रों में संजोयी यादें ..
क्या बात है, बहुत बढिया
maza ayaa,
pyari tasweeren.:)
waah
Post a Comment