Sunday, July 7, 2013

आहें भरकर क्यों गुजरेगी , अब रात हमारे सावन की ( अजय की गठरी )

                            (६५)
हर शाम हो जैसे गजलों का ,हर रात हो जैसे पूनम की |
दिल मेरा तेज धड़कता है , जब झलक दिखे मेरे साजन की ||

इक गीत प्यार का होठों पर
इक जाम प्यार का आँखों में |
साँसों में फूलों की खुशबू ,
अंदाज प्यार का बातों में ||
मिल गया मुझे पूरा सागर ,ख्वाहिश थी केवल शबनम की ||

मैंने इक सपना देखा था
जब मुझे मिले वो राहों में |
जब नजर मिली तो दिल भी मिले
फिर डाल दी बाहें , बाहों में ||
आहें भरकर क्यों गुजरेगी , अब रात हमारे सावन की ||

तुम्हें प्यार मैं कितना करता हूँ
ये पूंछ रही हो मुझसे तुम |
मेरा जवाब मिल जाएगा
ज़रा पूंछ के देखो खुदसे तुम ||
मेरे दिल की बातें छोड़ो ,तुम बात करो अपने मन की ||

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गठरी पर अजय कुमार
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6 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही खूबसूरत.

रामराम.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर
क्या कहने

मुकेश कुमार सिन्हा said...

वह रे प्यार !! खुबसूरत :)

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर .. प्रेम भाव लिए अच्छी रचना ...

Unknown said...

सुन्दर

डॉ टी एस दराल said...

वाह ! स्वपनिल प्रेममयी सुन्दर गीत।