थरूर का गुरूर
थरूर साहब के बारे में सुना तो लगा ,अच्छे लोग राजनीती में फिर आने लगे हैं !मगर ग़लतफ़हमी जल्दी दूर हो गई ये भी छुटभैय्या नेता निकले !इकोनोमी क्लास में ठीक ठाक लोग यात्रा करते हैं !आपने उन्हें कैटिल क्लास बोल दिया !आप जब ग्रामीण क्षेत्र में जायेंगे और गरीब बदहाल जनता को देखेंगे तो उन्हें क्या कहेंगे ? सुनना बाकी है !आम जनता तो पहले से ही मंहगाई , भ्रष्टाचार , और अनगिनत घोटालों का डंडा एक कैटिल की तरह बर्दास्त कर रही है !
आप तो आम जनता की हालत सुधारने का प्रयास करने की बजाय उन पर व्यंग कर रहे हैं !!
एक कहानी सुनी थी कि अच्छे ओहदे वाले व्यक्ति ने अपने गरीब पिता का परिचय , अपने नौकर के रूप में कराया था ! माननीय विदेश राज्य मंत्री जी - विदेशों में आप अपने देश का परिचय कैसे कराएँगे ???
13 comments:
थरूर ने जो उम्मीद जगाई थी .उससे निराशा ही हाथ लगी है.
bahut din soch rha tha isko gaali kaise dun pa aap ne seedhe -seedhe
samjha diya bahut -bahut dhanybaad
सब मिलकर देश की वाट लगा रहे है,और हम कैटल बने देख रहे है!
हिंदी ब्लॉग जगत पे आपका स्वागत है !
सही दिया है लगाके
इस बारे में दैनिक भास्कर पत्र में चेतन भगत का बहुत अच्छा लेख पढ़ा.
असल में पश्चिम में, अंग्रेज़ी भाषा में 'कैटल क्लास' एक मुहावरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
हाँ हमें यह लगता है कि शशि थरूर जी सांस्क्स्कृतिक भिन्नता को ध्यान में रखें तो और भी अच्छा हो. किंतु इस मुद्दे पर इतनी हाय तौबा मचाना ठीक नहीं है. और भी गम्भीर मुद्दे हैं इस देश में. वैसे भ्रष्टाचार के बारे में भी हम बात कर सक्ते हैं.....
बुरा लगा हो तो मुआफी चाहते हैं...
आपका ही
चन्दर मेहेर
lifemazedar.blogspot.com
समझ अपनी अपनी होती है। आगे के लिये शुभकामनाएं। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं, लेखन कार्य के लिए बधाई
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मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप सब का आभारी हूँ
प्रिय मित्र अवतार बाबा जी , आपने सही फ़रमाया की
इसे मात्र एक विदेसी मुहावरे के रूप में देखना चाहिए
लेकिन आम जन कैसे समझेंगे ? बोलने वाला यदि
स्थान ,काल , पात्र का ध्यान रक्खे तो समस्या नहीं
होती ! और हाँ बुरा बिलकुल नहीं लगा , बल्कि एक
जानकारी देने का शुक्रिया
बहुत ही शर्मनाक है यह घटना ।
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....
satta ke sarur me hai tharur.narayan narayan
जी हाँ मै आपसे बिलकुल सहमत हूँ..जब पढ़े लिखे जानकार लोग ही ऐसा करेंगे तो दुःख तो होगा ही...पर जरूरत है भावनाओं की ..जो हमारे संस्कारों से आती है ..
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