जीवन की आपाधापी में ,कोई मुझसे मिला अनजाना सा |
उसकी आँखें , उसकी वो अदा ,उसका चेहरा पहचाना सा ||
वो थोड़ा सा शरमाया भी
देखा मुझको ,मुस्काया भी
मुस्कान लगा मुझको जैसे
कुछ फूलों का खिल जाना सा ||
आँखों में उसके राज नया
बातों का इक अंदाज नया
आँखों में अपनापन देखा
अंदाज लगा पहचाना सा ||
वो ऐसे ही हर बार मिला
जैसे की , पहली बार मिला
हर बार लगा अनजाना सा
पर आज लगा पहचाना सा ||
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गठरी पर अजय कुमार
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6 comments:
बहुत ही सुन्दर रचना..
:-)
जीवन में नयापन बनाए रखना जरूरी है ... चाहे कोई अंजाना हो या पहचाना ....
वो कौन था /थी। :)
वाह ... बेहतरीन
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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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वो ऐसे ही हर बार मिला
जैसे की , पहली बार मिला
हर बार लगा अनजाना सा
पर आज लगा पहचाना सा
बहुत सुंदर...
आदरणीय अजय कुमार जी !
ख़ूबसूरत रचना !
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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sunder prastuti
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