जब तुम नहीं तो ये शहर, वीरान बहुत है |
तुम हो तो इस शहर में भी , जान बहुत है ||
मुझको बताओ दिल में मेरे दर्द क्यूं उठा
सुनते है तुम्हें दर्द की पहचान बहुत है ||
करना है आपको ही मेरे दर्द का इलाज |
बस मुस्कुराके देखिये , आसान बहुत है ||
रहती है इस गली में , कोई शोख हसीना |
कमसिन सी , अपने हुश्न से , अनजान बहुत है ||
हो जाय मयस्सर कभी जुल्फों की घनी छाँव |
भेजूं किसी को फूल ये अरमान बहुत है ||
इन इश्क की गलियों में बहुत लोग मिलेंगे |
किसी का नाम बहुत है , कोई बदनाम बहुत है ||
पूछा किसी आशिक से , की आराम है कहाँ
बोला उन्हीं की बांह में आराम बहुत है ||
जब सो गए बच्चे तो ,उन्हें प्यार से चूमा |
बोले की हटो , छोड़ो , सुबह काम बहुत है ||
तुम्हारे ख़त , तुम्हारी याद , तुम्हारी तस्वीर |
कहते हैं मेरे घर में , सामान बहुत है ||
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"गठरी" पर अजय कुमार
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9 comments:
बहुत बढ़िया प्रस्तुति-
अजय जी-
शुभकामनायें ||
वाह बहुत खूब ...
बुद्धिमान बनना है तो चुइंगम चबाओ प्यारे - ब्लॉग बुलेटिनआज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शायद पहली बार आया हूँ.... गजब का लिखते हैं अजय जी ... एक एक शेर लाजवाब... कुछ शेर बेहद पसंद आए लेकिन पूरा खिला गुलशन ही अच्छा है ... तो दो चार फूल क्यों चुनूँ :) बहुत बहुत बधाई
जब सो गए बच्चे तो ,उन्हे प्यार से चूमा ,
बोले की हटो ,छोड़ो ,सुबह काम बहुत है ,
गृहस्त जीवन की बारीकियो का जबरजस्त चित्रण ,सीधी सरल भाषा में मारक एहसास ये बया ,शुभकामनाये
वाह बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ....
बेहद सुंदर प्रस्तुति अजय साहब!!
bahut sohna likhiya hai.. maine ise apni forum mein share kiya hai, aggar koi objection ho tn bata den, remove kr denge..
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very nice..i have noted down some lines as it is very beutifully written
it is very beautifully written...i highly appreciate this..
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