Wednesday, October 21, 2009

गुजारिश

तकरार नहीं करते ,इंकार नहीं करते
अच्छे मौसम को यूँ ,बेकार नहीं करते |
जब भी पूछा उनसे ,है प्यार तुम्हें मुझसे ?
नज़रें वो झुकाते हैं , इजहार नहीं करते |
क्यों होने लगी तुमको ,परवाह जमाने की
कह दो खुलकर मुझसे ,तुम प्यार नहीं करते |
आहें न भरा करते ,हम आपकी यादों में
तस्वीर अगर होती ,तो चूम लिया करते |
पूनम की रातों को सब प्यार में डूबे थे
जब तुम ही नहीं आये ,हम प्यार किसे करते |
ये सच है नहीं आये ,मिलने के लिए तुमसे
पर ये न समझ लेना ,हम प्यार नहीं करते |
हर एक से मिलते हैं ,हम प्यार मोहब्बत से
बस एक है दिल अपना , दो चार नहीं रखते
ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

28 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर, खासकर दूसरा और आख़िरी चाँद बहुत प्यारा है !

rashmi ravija said...

khubsoorat gazal hai...majahb me bante dar ko sansaar nahi kahte....sahi kaha aapne..

vandana gupta said...

bahut hi sundar bhavon se saji rachna..........badhayi

दिगम्बर नासवा said...

ये सच है नहीं आये ,मिलने के लिए तुमसे
पर ये न समझ लेना ,हम प्यार नहीं करते...

सुभान अल्ला ........ कमल का शेर है यह .... प्यार तो हम करते ही हैं ...........
बहुत खूबसूरत लिखा है .........

रंजू भाटिया said...

ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

बहुत सुन्दर सही लिखा आपने शुक्रिया

सदा said...

ये सच है नहीं आये ,मिलने के लिए तुमसे
पर ये न समझ लेना ,हम प्यार नहीं करते

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

VIMAL VERMA said...

kamaal hai bhaai,log bhi aapke khoob aa rahe hai....aise hi likhte rahiye......

मनोज कुमार said...

सरस, रोचक रचना के लिए बधाई।

BAD FAITH said...

अच्छा जा रहें हैं जनाब. बधाई.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

बेहद सारगर्भित पंक्तियां

निर्मला कपिला said...

ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |
वाह बहुत सुन्दर शुभकामनायें

शोभना चौरे said...

khubsurt rachan hai
ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

bahut acha sher

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

सुन्दर भावों से सजी इस कविता के लिए,
आपको बहुत-बहुत बधाई!

भंगार said...

जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम जनब गठरी जी ,आप में ने कोई दर्द छिपा
रखा है ,अब जो रिस -रिस के निकल रहा है
दर्द को अन्दर जमने मत दीजिये ...भई खूब
लिखा आप ने ,कायल हो गया आप की कलम

Science Bloggers Association said...

इंसानियत की भावना से लबरेज गजल को पढ कर अच्छा लगा। बधाई स्वीकारें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

M VERMA said...

जब भी पूछा उनसे ,है प्यार तुम्हें मुझसे ?
नज़रें वो झुकाते हैं , इजहार नहीं करते |
बेहद खूबसूरत रचना. एहसासो का जखीरा रख दिया आपने

Ajay Tripathi said...

आपकी शुभकामनाओं से मैं निकल पड़ा हूँ ऐसा ही संबल मिलता रहेगा तो लिखता भी रहूँगा पढ़े और टिप्‍पणी करते रहें तो पथ प्रदर्शन होता रहेगा।

दिपावली की शुभकामनाओं सहित

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut sunder...........bahut hi achchi lagi yeh rachna............

डिम्पल मल्होत्रा said...

ये सच है नहीं आये ,मिलने के लिए तुमसे
पर ये न समझ लेना ,हम प्यार नहीं करते...kuch to mazburia rahi hongee...

डॉ टी एस दराल said...

जब भी पूछा उनसे ,है प्यार तुम्हें मुझसे ?
नज़रें वो झुकाते हैं , इजहार नहीं करते |

अब ये भी तो एक इज़हार ही है.
सुन्दर रचना.

मनोज भारती said...

ढूंढो ऐसी दुनिया ,इंसान जहाँ पर हों
मजहब में बँटे दर को संसार नहीं कहते |

बहुत सुंदर रचना है ।

हरकीरत ' हीर' said...

जब भी पूछा उनसे है प्यार तुम्हें मुझसे
नज़रें वो झुकाते इजहार नहीं करते

बहुत सुंदर....!!

ढूढो ऐसी दुनिया इंसान जहां पर हों
मज़हब में बंटे दर को संसार नहीं कहते ....

वाह...वाह.....बहुत खूब ....!!

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना प्रशंग्सनीय है!

kshama said...

Behad sundar khayalaat hain...utne hee sundar dhang se pesh kiye gaye hain..Aakharee 2 panktiyon me saraa nichod samaa gaya hai..

Anonymous said...

gujarish karte rahiye

Prashant said...

bahut hi sundar

manish maurya said...

Bahot hi badiya ajay ji ..pad ke bahot anand aaya...

Unknown said...

acchi lines hai khaskar shuru ki panktiya.... congtrates......