तुम्हारे प्यार में बरबाद हो कर ।
मैं फिर भी याद करता हूं तुम्हें ,दिन रात रो कर ॥
वो लम्हे प्यार के
जिसमें सजा लेते थे सपने ।
बिखर जाते थे पल में ,
तुम्हारा साथ खोकर ॥
इधर मैं भी हूं तंन्हां
उधर तुम भी अकेली ।
चांदनी जल रही है ,
बहुत ठंडा है बिस्तर ॥
ये अंदाजा किसी चेहरे से
कोई क्या लगाये ।
लगे इस जिंदगी में उसको
कितनी बार ठोकर ॥
मेरी मासूमियत का फायदा
सबको मिला है ।
मुझे सबने बना डाला
हर इक इल्जाम का दर ॥
मुझे मनहूस भी
तुमने कहा था ।
तबस्सुम से मेरे
अंजान हो कर ॥
न बाबूजी जी झिड़की
न अम्मा की नसीहत ।
तूं घर से दूर है तो
जरा भगवान से डर ॥
गुजारिश ,इल्तजा,
मिन्नत है ,भगवन ।
जरा लम्बी तो दे दो
सभी पैरों को चादर ॥
106. मुम्बई जाकर वकालत
18 hours ago