लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥
76. बच्चों की पढ़ाई
13 hours ago