( ६७ )
सोचता हूँ कि तुम्हें ,प्यार इतना न करूं |
छुपके देखा न करूं ,फूल से मारा न करूं ||
अदाएं हुश्न की , तेरी हैं ,इस कदर कातिल
कि मैंने सोच लिया , वक्त को जाया न करूं ||
मैंने सोचा कि तुम्हें प्यार से देखूं न कभी |
कोई तस्वीर तेरी , पास में रक्खूं न कभी |
अपने हाथों से तेरे जुल्फ ,संवारा न करूं ||
तुम जो आओ तो , किसी काम में मसरूफ रहूँ |
तुमसे जाने को कहूं ,और अकेला ही रहूँ |
देखकर तुमको कभी ,आह ठंडी न भरूं ||
तुमको देखा तो लगा ,वक्त कटेगा अब तो |
ये न सोचा कि कोई,तंग करेगा मुझको |
कितना चाहा कि तुम्हें ,प्यार से देखा न करूं ||
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गठरी पर अजय कुमार
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सोचता हूँ कि तुम्हें ,प्यार इतना न करूं |
छुपके देखा न करूं ,फूल से मारा न करूं ||
अदाएं हुश्न की , तेरी हैं ,इस कदर कातिल
कि मैंने सोच लिया , वक्त को जाया न करूं ||
मैंने सोचा कि तुम्हें प्यार से देखूं न कभी |
कोई तस्वीर तेरी , पास में रक्खूं न कभी |
अपने हाथों से तेरे जुल्फ ,संवारा न करूं ||
तुम जो आओ तो , किसी काम में मसरूफ रहूँ |
तुमसे जाने को कहूं ,और अकेला ही रहूँ |
देखकर तुमको कभी ,आह ठंडी न भरूं ||
तुमको देखा तो लगा ,वक्त कटेगा अब तो |
ये न सोचा कि कोई,तंग करेगा मुझको |
कितना चाहा कि तुम्हें ,प्यार से देखा न करूं ||
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गठरी पर अजय कुमार
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