Sunday, September 8, 2013

सोचता हूँ कि तुम्हें ,प्यार इतना न करूं (अजय की गठरी )

                 ( ६७  )
सोचता हूँ कि तुम्हें ,प्यार इतना न करूं |
छुपके देखा न करूं ,फूल से मारा न करूं ||
अदाएं हुश्न की , तेरी हैं ,इस कदर कातिल
कि मैंने सोच लिया , वक्त को जाया न करूं ||

मैंने सोचा कि तुम्हें प्यार से देखूं न कभी |
कोई  तस्वीर तेरी , पास में रक्खूं न कभी |
अपने हाथों से तेरे जुल्फ ,संवारा न करूं ||

तुम जो आओ तो , किसी काम में मसरूफ रहूँ |
तुमसे जाने को कहूं ,और अकेला ही रहूँ |
देखकर तुमको कभी ,आह ठंडी न भरूं ||

तुमको देखा तो लगा ,वक्त कटेगा अब तो |
ये न सोचा कि कोई,तंग करेगा मुझको |
कितना चाहा कि तुम्हें ,प्यार से देखा न करूं ||

************************************
गठरी पर अजय कुमार
************************************