( ६४ )
मैंने तुम्हे दिल में क्यों बसाया
तुमने --
कभी रुलाया तो कई बार , हंसाया
अनगिनत बार तुम मेरे सुख -दुःख का कारण बने
चाहकर भी मैं तुमसे विमुख नहीं हो सकता
क्यों की हे क्रिकेट तुम नहीं हो गंदे -----
गंदे हैं तुम्हारे चंद नुमाइन्दे----
हम उस दौर में जी रहे हैं
जहां --पैसा ,व्यक्ति और व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है
पद प्रतिष्ठा ,सम्मान दिलाता है
यही सोच हमें गुनाह के दलदल में ले जाता है
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गठरी पर अजय कुमार
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मैंने तुम्हे दिल में क्यों बसाया
तुमने --
कभी रुलाया तो कई बार , हंसाया
अनगिनत बार तुम मेरे सुख -दुःख का कारण बने
चाहकर भी मैं तुमसे विमुख नहीं हो सकता
क्यों की हे क्रिकेट तुम नहीं हो गंदे -----
गंदे हैं तुम्हारे चंद नुमाइन्दे----
हम उस दौर में जी रहे हैं
जहां --पैसा ,व्यक्ति और व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है
पद प्रतिष्ठा ,सम्मान दिलाता है
यही सोच हमें गुनाह के दलदल में ले जाता है
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गठरी पर अजय कुमार
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