गांव में सुबह से ही हलचल शुरु हो जाती है ।लोग
अपने काम में लग जाते हैं । यहां मुम्बई में भी लोग भोर में चहल पहल शुरू कर देते हैं और नौकरी अर्थात
दूसरे के काम में लग जाते हैं ।हां तो बात का रुख बदले इससे पहले बता दूं कि आज भी गांव में
ग्रामीण-अलार्म की व्यवस्था काम कर रही है । नहीं समझे , अरे भाई ग्रामीण-अलार्म माने काग भुसुण्डी जी । काग भुसुण्डी भी नहीं जानते !!! अच्छा--- कौवा (Crow ) तो समझेंगे । याद आया सुबह की कांव कांव ,बिला नागा सही समय पर ।
अब ज्यादातर घरों में सुबह सुबह सुनाई देता है-’अरे उठिये--आफिस नहीं जाना । खुद तो सोये हैं ,उसका भी स्कूल-बस छुड़ायेंगे ।नहाना नहीं है क्या ? पानी चला जायेगा । चाय ठंढी हो रही है .मैं पी लूं क्या ?? आदि आदि (पता नही कितने लोग डर के मारे असहमत होंगे )
ये आवाज किसकी होती है ,नहीं लिखुंगा ।आखिर वो भी तो ब्लाग पढ़ती हैं ।
काग भुसुण्डी (कौवा),समय का पाबंद और सजग
इस तरह हम भी सुबह उठ गये ,लेकिन करें क्या आफिस तो जाना नहीं ,तो हमने सोचा चलो ताजी सब्जियां ले आयें । हालांकि गर्मी का मौसम था लेकिन पूरा खेत सब्जियों से हरा भरा था -
सब्जियों की हरियाली (भिंडी ,अरवी ,तरोई )
मेहनत का फल हरा-भरा
सबसे पहले तो मैंने बेटे को सारी सब्जियों की पहचान कराई ।उसने उत्सुकता से सब देखा ।तब तक फावड़ा (कुदाल) आ गया और अरवी (घुइया) को खोद कर निकालना शुरु हो गया । इस बीच भिण्डी ,तोरई और लौकी भी तोड़े जाने लगे ,और मैं बेटे के साथ फोटो खींचने में व्यस्त हो गया
सुबह सुबह नाश्ते का मजा
अरवी (घुइयां)
"थोड़ा सब्र करिये , तराजू से उतरकर आपके ही पास आउंगी "
अब हम झोला लटका कर घर आ गये ।अरे हां एक बात तो बताना ही भूल गया अरवी के पत्तॊं की बहुत ही जायकेदार पकौड़ी बनती है ,लेकिन अभी विराम ले रहा हूं ।अगले पोस्ट में इसकी चर्चा करुंगा ---------------
भरे रहे खलिहान अन्न से
खेतों में हो हरियाली ।
पूर्ण विकास तभी होगा
जब
गांव में होगी खुशहाली॥
(सभी चित्र बेटे आयुष ने खींचे)