Wednesday, October 26, 2011

करे प्रकाशित अंतर्मन को-----(अजय की गठरी)

आज समाज में रावणों की संख्या बढ़ रही है , तरह तरह के रावण सामने आ रहे हैं । लगता है जैसे इनके दस नहीं असंख्य सिर हो गये हैं । ऐसे समय में दीपावली की महत्ता और विस्तार से तथा नये अर्थों में परिभाषित करने की जरूरत है ,जिससे आने वाली पीढ़ियां इससे लाभ उठा सकें ।
 आज दीपावली के शुभ अवसर पर सब के लिये शांति ,सुख ,संतुष्टि की मंगल कामना के साथ दो रचनाकारों की रचना प्रस्तुत है ,आशा है पसंद करेंगे आप सब ।

                मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम                                           

छोड़कर चल दिए रस्ते सभी फूलों वाले  , चुन लिए अपने लिए पथ भी बबूलों वाले 
उनके किरदार की अज़मत है निराली शाहिद,
दोस्त तो दोस्त, हैं दुश्मन भी उसूलों वाले
       
                    क़ुदरत का पैग़ाम

हमको क़ुदरत भी ये पैग़ाम दिए जाती है,जश्न मिल-जुल के मनाने का सबक लाती है|

अब तो त्यौहार भी तन्हा नहीं आते शाहिद ,साथ दीवाली भी अब ईद लिए आती है||

            रोशनी और ख़ुशबू                                                           
दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है,
दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है|  
जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफ़ा शाहिद , 
जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है                                            

           शुभ दीपावली

आओ अंधकार मिटाने का हुनर सीखें हम,कि वजूद अपना बनाने का हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, और उजाला फैले, दीप से दीप जलाने का हुनर सीखें हम
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                                                          रचनाकार-श्री शाहिद मिर्ज़ा शाहिद जी

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जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।।
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रचनाकार- श्री गोपालदास "नीरज" जी
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और अंत में मेरी तरफ से शुभकामना सहित ये चंद पंक्तियां------

मिले प्रतिष्ठा ,यश ,समृद्धी ,जीवन में खुशहाली हो ।
करे प्रकाशित अन्तर्मन को ,ऐसी शुभ दीवाली हो ॥

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आप सभी को सुंदर ,सुरक्षित एवं प्रदूषणमुक्त दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
                                          (गठरी पर अजय कुमार)
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Sunday, October 9, 2011

इजहार-ए-इश्क तुमसे क्यूं कर न सके हम (अजय की गठरी)

तुम बिन तुम्हारी याद में ,पीते हैं सदा गम ।
इजहार-ए-इश्क तुमसे ,क्यूं कर न सके हम ॥


जब हो न सके मुझको ,दीदार तुम्हारा ।
दिन भर तेरी तस्वीर का करते हैं नजारा ।
रातों को तेरी याद में , जलते हैं सदा हम ॥


आँखों से छलकते हैं तेरे ,जाम के प्याले ।
चेहरे की चमक से तेरे , फैले हैं उजाले ।
है ताज भी कुछ ऐसा ,यही सोचते हैं हम ॥


होंठों पे तबस्सुम है या , बिजली की चमक है ।
सांसें हैं या ,सावन के हवाओं की महक है ।
दिल चाहता है तुम पे , निसारूं कई जनम ॥


ज़ुल्फें बिखेर दी तो , घटा ऐसी छा गई ।
ये मन मयूर समझा कि , बरसात आ गई।
दिल नाचने लगा है , आ जाओ ऐ सनम ॥


तारों की कसम मैंने , तुम्हें प्यार किया है ।
मैंनें तो तुम्हें कत्ल का ,अधिकार दिया है ।
जां निकले तेरी बांह में , ये चाहते हैं हम ॥ 
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गठरी पर अजय कुमार
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