Sunday, July 31, 2011

जिसने तेरी ज़ुल्फों में------(अजय की गठरी)

                        -५४-
जिसने तेरी ज़ुल्फों , में ये फूल लगाया है।
उसने तुम्हें चाहा है , दिल मेरा जलाया है॥

जी भर के मैंनें चूमा , जो फूल तुमने भेजा।
मैंनें तेरे तोहफे को , सीने से लगाया है॥

हर पूछने वाले से , इतना ही कहुंगा मैं।
मैंनें तुम्हें चाहा है , इस दिल में बसाया है॥

वो कभी हो नहीं सकता है , खुशी से पागल।
अदब से जिसने भी , गम को गले लगाया है॥

वो जिससे उम्र भर , जलते रहे , फरेब किया।
वो शख्स आज अब , मरने पे याद आया है॥

Sunday, July 17, 2011

जन्मदिन कैसे मनायें ???(अजय की गठरी)

है लहू से लाल धरती ,कैसे कोई गीत गायें ?
मन व्यथित व्याकुल ह्रदय है
जन्मदिन कैसे मनायें ?

जिन पे जिम्मेदारियां हैं ,वो बयानों में हैं उलझे ।
ध्यान मुद्दे से हटा है ,समस्या कैसे ये सुलझे ?
खत्म इनमें भावना है ,मिट गईं संवेदनायें ॥
मन व्यथित व्याकुल ह्रदय है,जन्मदिन कैसे मनायें ?

ये पकड़ में आये भी तो , इनके बाप का क्या जायेगा ?
देश के पैसों से इनका ध्यान रक्खा जायेगा ।
ठाट से जिंदा रहें ये , और हम मातम मनायें ॥
मन व्यथित ,व्याकुल ह्रद्य है ,जन्मदिन कैसे मनायें ?

जहर नफरत का है फैला , तुम नहीं इसमें उलझना ।
धर्म के उन्मादियों से , तुम सदा ही दूर रहना ॥
सफल और खुशहाल जीवन की बहुत शुभकामनायें ॥
प्रेम की गंगा बहायें , दिल किसी का ना दुखायें ।
जन्मदिन ऐसे मनायें,   जन्मदिन ऐसे  मनायें ॥

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विगत १३ जुलाई को मुम्बई में आतंकी घटना हुई ,तमाम जिम्मेदार नेताओं ने गैरजिम्मेदाराना बयान दिये, मीडिया में मुम्बई के स्पिरिट (????) की तारीफ हुई ।
आज १७ जुलाई को मेरे बेटे आयुष का जन्मदिन है , इस समय जो विचार आये ,आपके सामने है ।



हम आयुष के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए ,सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं  कि आने वाली पीढ़ी को सुंदर समाज मिले ।
*******अजय कुमार एवं नलिनी श्रीवास्तव(पापा-मम्मी)*************

Saturday, July 2, 2011

५२-मेरा दिल ले गई है वो-----(अजय की गठरी)

                  -५२-

ये कैसा दौर आया है , हुआ फैशन से कन्फ्युजन ।
जिसे हम नर समझते थे , असल में वो तो मादा है ॥

मुहल्ले की हसीना है , वो जिसकी आज है शादी ।
झूमकर मैने भी नाचा , मगर अफसोस ज्यादा है ॥

ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥

सामने पत्नियों के , सारे पतियों की हवा निकली ।
जो खुद को शेर कहता है , वही खरगोश ज्यादा है ॥

कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥

घर में सुख-चैन से रहना , कोई जादू नहीं होता ।
वही सब होते रहने दो , जो पत्नी का इरादा है ॥

लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥

इलेक्शन का टिकट पक्का है मेरा , कटेगा कैसे ?
गुनाहों से भरा दामन , शराफत का लबादा है ॥