Wednesday, June 23, 2010

हजार टिप्पणी का आनंद और सच्चे हिंदुस्तान में लिट्टी-चोखा की मस्ती

मुझे टीपना और टिपियाया जाना दोनों में आनंद मिलता है ,इसीलिये जब १८ जून को दीप्ती जी ने मेरे पोस्ट "सच्चा हिंदुस्तान " पर टिप्पणी की तो मेरे ब्लाग पर १००० टिप्पणी पूरी हो गई ,और मेरी कालर थोड़ी ऊंची हो गई ।

                                   आप सब  के आशीर्वाद  और स्नेह का आभार ।
                               गठरी को मिला एक हजार टिप्पणियों का प्यार ॥
                                   
हालांकि टिप्पणी वाला टेम्पलेट सही नही है,लेकिन मैंने एक्सेल शीट में तालिका बना रखी है ।वैसे मेरे ब्लाग से झंडा भी गायब है । गुणीजन मदद करें ।
                                            अब बात हमारे गांव की
 एक दिन लिट्टी खाने की इच्छा हुई । लिट्टी को बाटी या भौरी के नाम से भी जाना जाता है।आटे की लोई (गोलाकार ) बनाकर उसमें चने का सत्तू भर दिया जाता है ,फिर उसे आग में पकाया जाता है ।
सबसे पहले व्यवस्था की गई कंडा अर्थात उपला या गोइठा की (नीचे चित्र देखिये )

कंडा ,उपला या गोइठा

गोबर ,पुवाल (धान का सूखा पौधा )और धान की भूसी को मिलाकर ,मनचाहा आकर देकर सुखा लिया जाता है ,और कंडा तैय्यार हो जाता है ।आगे के कार्यक्रम में कंडे की आग में लिट्टी को पकाया गया -
                      कंडे की आग

 उसी आग में आलू ,बैगन आदि भूना जाता है,भर्ता या चोखा बनाने के लिये। क्योंकि लिट्टी -चोखा की जोड़ी तेंदुलकर-गांगुली की तरह हिट है।कुछ लोग लिट्टी के साथ मीट का लुत्फ भी उठाते हैं लिट्टी पकाते समय बीच बीच में चेक करते रहना भी जरूरी है-
 
                                        उनींदी आंखों से लिट्टी का इंतजार

कुछ लोग लिट्टी बनाने में माहिर होते हैं ।अन्यथा लिट्टी बाहर से पक जायेगी और अंदर कच्चा रह जायेगा और खानेवाले को डा.दराल जी के पास जाना पड़ेगा । ऐसे ही माहिर को बुलाया गया था ,लिट्टी बनाने के लिये । लालटेन की रोशनी और बच्चों का शोर ,मजा आ गया ।वैसे हमारे गांव में बिजली की व्यवस्था है ,लेकिन अक्सर कटौती चलती रहती है जिसका समय भी निर्धारित नहीं है । अब  सरकार क्या करे गांव में बिजली देगी तो आई पी एल के मैच कैसे होंगे ? गांव में किसी पूंजीपति या राजनेता आदि ने तो इन्वेस्ट नहीं किया है ना ।समझा करिये----

पक गया क्या ?? 
पक जाने के बाद एक एक लिट्टी को साफ किया गया और लीजिये लिट्टी तैय्यार है ।अब आप घी लगा कर खायें या बिना घी के आप की मर्जी ,मजा तो आयेगा ही -
 


अब हमने लिट्टी-चोखा का भरपूर आनंद लिया । खाते समय का फोटो नहीं दे रहा हूं ,क्योंकि शातिर लोग गिन लेंगे ।
आज इतना ही ,आगे भी जारी----

(सभी चित्र बेटे आयुष ने खींचे )

Sunday, June 13, 2010

सच्चा हिंदुस्तान

अभी अभी गाँव से लौटा हूं , सुखद अनुभूतियों के साथ ।हमारे गाँव के आसपास बागों की बहुतायत है और लगभग ३ कि.मी. पर जंगल है तो वातावरण काफी अच्छा रहता है ।हालांकि गर्मी बहुत थी , फिर भी शाम से मौसम ठीक हो जाता था ,और छत पर सोने का अह्सास सुखद था । हैंडपम्प से नहा कर तो अत्यधिक आनंद आया ।मैनें बेटे को बताया कि ये वातानुकूलित जल है, गर्मी में ठंढ़ा तथा सर्दी में गर्म । शायद उसे शीतल जल का अर्थ भी समझ में आ गया होगा ।
इस बार आम की फसल कम है । लेकिन ये तो होता ही है ,कि आम एक साल अच्छे आते हैं और दूसरे साल कम । फिर भी पर्याप्त है ।
      


एक झलक बाग की


खबरदार ,
आम तोड़ना मना है



बेटे ने लिया ताजे आम का स्वाद (इससे ताजे आम मिलेंगे भी नही )


आज तो बस इतना ही ,आगे और भी बातें होंगी ।

हो गया मैं नास्टेल्जिक , आकर के गाँव में ।
ए.सी. डाउन मार्केट हुआ , पीपल के छाँव में ॥