आप सब के आशीर्वाद और स्नेह का आभार ।
गठरी को मिला एक हजार टिप्पणियों का प्यार ॥
हालांकि टिप्पणी वाला टेम्पलेट सही नही है,लेकिन मैंने एक्सेल शीट में तालिका बना रखी है ।वैसे मेरे ब्लाग से झंडा भी गायब है । गुणीजन मदद करें ।
अब बात हमारे गांव की ।
एक दिन लिट्टी खाने की इच्छा हुई । लिट्टी को बाटी या भौरी के नाम से भी जाना जाता है।आटे की लोई (गोलाकार ) बनाकर उसमें चने का सत्तू भर दिया जाता है ,फिर उसे आग में पकाया जाता है ।
सबसे पहले व्यवस्था की गई कंडा अर्थात उपला या गोइठा की (नीचे चित्र देखिये )
कंडा ,उपला या गोइठा
गोबर ,पुवाल (धान का सूखा पौधा )और धान की भूसी को मिलाकर ,मनचाहा आकर देकर सुखा लिया जाता है ,और कंडा तैय्यार हो जाता है ।आगे के कार्यक्रम में कंडे की आग में लिट्टी को पकाया गया -
उसी आग में आलू ,बैगन आदि भूना जाता है,भर्ता या चोखा बनाने के लिये। क्योंकि लिट्टी -चोखा की जोड़ी तेंदुलकर-गांगुली की तरह हिट है।कुछ लोग लिट्टी के साथ मीट का लुत्फ भी उठाते हैं लिट्टी पकाते समय बीच बीच में चेक करते रहना भी जरूरी है-
उनींदी आंखों से लिट्टी का इंतजारकुछ लोग लिट्टी बनाने में माहिर होते हैं ।अन्यथा लिट्टी बाहर से पक जायेगी और अंदर कच्चा रह जायेगा और खानेवाले को डा.दराल जी के पास जाना पड़ेगा । ऐसे ही माहिर को बुलाया गया था ,लिट्टी बनाने के लिये । लालटेन की रोशनी और बच्चों का शोर ,मजा आ गया ।वैसे हमारे गांव में बिजली की व्यवस्था है ,लेकिन अक्सर कटौती चलती रहती है जिसका समय भी निर्धारित नहीं है । अब सरकार क्या करे गांव में बिजली देगी तो आई पी एल के मैच कैसे होंगे ? गांव में किसी पूंजीपति या राजनेता आदि ने तो इन्वेस्ट नहीं किया है ना ।समझा करिये----
पक गया क्या ??
पक जाने के बाद एक एक लिट्टी को साफ किया गया और लीजिये लिट्टी तैय्यार है ।अब आप घी लगा कर खायें या बिना घी के आप की मर्जी ,मजा तो आयेगा ही -
अब हमने लिट्टी-चोखा का भरपूर आनंद लिया । खाते समय का फोटो नहीं दे रहा हूं ,क्योंकि शातिर लोग गिन लेंगे ।
आज इतना ही ,आगे भी जारी----
(सभी चित्र बेटे आयुष ने खींचे )