Sunday, July 11, 2010

अनुत्तरित प्रश्न

इस देश को तब
सोने की चिड़िया कहा गया
जब यहाँ होते थे ,
हरे भरे खेत-खलिहान ।
आज भ्रष्ट और बेइमान लोग
खाते हैं छप्पन भोग
और गरीबों को नसीब नहीं होता
थोड़ा सा जलपान ।
वो कहते हैं कि
देश तेजी से तरक्की कर रहा है
देखते नहीं शेयर मार्केट की उठान ।
पर अनुत्तरित प्रश्न तो ये है
कि
इस विकासशील देश में
भूख और गरीबी से तंग आकर
कब तक आत्महत्या के लिये
विवश होता रहेगा कोई किसान ???

39 comments:

alka mishra said...

बिलकुल सही प्रश्न उठाया आपने कविता में
साधुवाद
और हाँ फोटो अब कुछ वास्तविक लगती है,इसके लिए शुक्रिया

दिगम्बर नासवा said...

संवेदनशील विषय को उठाया है आपने ... आज देश के लोग सेंसेक्स को देख कर तरक्की का अंदाज़ा लगाते हैं ... जबकि असल तरक्की भारत के किसानों में छुपी है ...

डॉ टी एस दराल said...

सोचने पर मजबूर कर रही है आपकी रचना , अजय भाई।

कृषि प्रधान देश में ये जो नौबत आई है
हमने अपने हाथों ही बनाई है ।
अन्न के भरे पड़े हैं भण्डार
फिर भी देश में भुखमरी छाई है।

क्यों ?

समय चक्र said...

बहुत सटीक रचना...गरीबी और भुखमरी के कारण कई गरीब जन आत्महत्या कर रहे हैं ...

Bakait said...

Sawal sahi hai par kya apko iska jawab nahi pata hai...but sawal uthane ke liye bahut bahut dhanyabad...aawazein uthnichahiyein

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील रचना....सही मुद्दा उठाया है..

अनामिका की सदायें ...... said...

बहुत सटीक रचना.

सुधीर राघव said...

बिलकुल सही

दीपक 'मशाल' said...

इस सवाल का जवाब कौन देगा ये भी तो नहीं पता.. जिन्हें देना चाहिए वो तो किसानों के नहीं क्रिकेटरों के मंत्री हैं.. पिछली 'चोखा-बाटी और ताज़ी सब्जियों वाली पोस्ट पढीं.. रोचक हैं लेकिन उनका अगला भाग कहाँ है???' :)

वाणी गीत said...

हम आप इन्टरनेट के जरिये लिख पढ़ रहे हैं , मोबाइल से हर व्यक्ति से जुड़े हैं , शोपिंग माल में खरीददारी कर सकते हैं ...
देश प्रगति कर तो रहा है ...
किसान , मजदूर , मेहनतकश ...इनको भी इसी प्रगति का जश्न मनाते खुश हो लेना चाहिए ..

सोचने को विवश करती रचना ..!

निर्मला कपिला said...

वाजिब सवाल ।
विकास शील किस मापदंड मे?
वास्त्विक्ता या पाखख्ड मे?
असली तस्वीर तो अभी बहुत दूर है। शुभकामनायें

vandana gupta said...

बिल्कुल सही प्रश्न्।

राजकुमार सोनी said...

ये देश है किसानों का
फिर भी सदियों से भूखा क्यों है
दुनिया के पेट को
रोटी देने वाला दाने-दाने को
तरसता क्यों है

MANOJ SRIVASTAVA said...

किसान छूट रहा है, हम देख रहे हैं। जबकि पीड़ा सबके मन में है, क्योंकि एक-दो पुश्त पहले हम भी किसान थे। क्योंकि आज भी हमारे भीतर एक दबा-छिपा किसान है।
ज़रूरतें इस तरह शुरू होती हैं
रोटी,कपड़ा,मकान
और इन्हें मुहैय्या कराने वालों की कतार
बिल्डर,व्यवसायी,किसान।

M VERMA said...

संवेदंशील और सार्थक रचना

palash said...

आपने समस्या को जिस तरह से रेखांकित किया वह सराह्नीय है
मगर मै इस ब्लाग को पठने वाले सभी पाठकगणों से अनुरोध करना चाहूँगीं कि एसके समाधान के लिये भी हमें कुछ करना चाहिये
क्योंकि
माना कि अकेले पथ पथ पर चलना
थोडा मुश्किल होता है
साथ अगर मिल जाये तो
सफर आसां कुछ होता है
चिंगारी मै बन जाती हूँ
आप बस इसमें घी डालो
सारे समाज की बुराई को
इसमें आज जला डालो
गर किसान ही नही रहा तो
पेट की आग तब भडकेगी
तेरे मेरे घर की सारी
बुनियादें तब बिखरेंगी
कहाँ पे लहरायेगा तब
झंडा अपनी प्रगति का
रुक जायेगा थम जयेगा
पहिया जीवन की गति का

सदा said...

बहुत ही सही, विचारों की श्रृंखला में इस यह विचार सराहनीय है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

मनोज कुमार said...

इस विकासशील देश में
भूख और गरीबी से तंग आकर
कब तक आत्महत्या के लिये
विवश होता रहेगा कोई किसान ???
ज्वलंत समस्या! एक आंकड़े के मुताबिक १९९७-२००१ क बीच ८० हज़ार से ज़्यादा किसानों ने अत्महत्या कर ली थी।

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi achchi lagiyah post.
samyanukul samvedansheel prashn.
behad hi prabhavpurn bhi.
poonam

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को हिला गये आपके प्रश्न।
--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।

वीरेंद्र सिंह said...

Very true... Sir. Same is happening in our country.

वीरेंद्र सिंह said...

Very true... Sir. Same is happening in our country.

Sumit Pratap Singh said...

nice post...

ZEAL said...

Indeed the nation is progressing but unfortunately it is unilateral. Rich are getting richer and poor people are going below poverty line , ending up their precious lives.

A very sad state of our country.

VIVEK VK JAIN said...

apka ye anutturit prashn sach me anutturit hai.
bahut sahi prashn, bahut vastvik rachna.

Asha Joglekar said...

सामयिक और सटीक व्यंग ।

Anupama Tripathi said...

सटीक -
सुंदर बधाई .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अमीर और अमीर, गरीब और गरीब हुए हैं।
यह देश समाज वाद का स्वप्न देखते-देखते पूँजीवादी हो चुका है ।

Unknown said...

जिनके बलबूते पर देश सोने की चिडिय़ा था उन्हें सियासी कौवे नोंच कर खा गए। सुंदर रचना और मेरी हौंसलाअफजाई के लिए साधुवाद।

RAJWANT RAJ said...

tb tk jb tk ki vo apne pr trs khata rhega our snsadhn dhudhne me apni puri takt na jhok de . hk ke liye aawaj bulnd kre , sngthn ki takt ko smjhe ,
aamir khan ki ''mhngai '' gane ko dekhiye , jha gyarh sou rupye mile the vha hk ke liye aawaj utha ke gyarh lakh niklva liye .
shoshn na ho iske prti jagrook hona bhut jruri hai .

sandhyagupta said...

Aapki rachna kai prashn khade karti hai.Uttar ka intzar hum Bharatvasi barson se kar rahen hai.sarthak rachna.shubkamnayen.

कंचन सिंह चौहान said...

aap ke blog par aap ka e-mail ID nahi mila isliye yahan likhna pad raha hai ki achchha laga ki aap Siddhartha Nagar ke rahne vale hain. Pahle se pata hota to avashya suchit karti.

Sadar
kanchan

अजय कुमार said...

कंचन जी मेर ईमेल आईडी है-ajaiji112@gmail.com जो कि लिखा हुआ है ,आपको नहीं मिला खेद है ।

संजय भास्‍कर said...

सोचने पर मजबूर कर रही है आपकी रचना

संजय भास्‍कर said...

अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

khushi said...

bahut khoob! sachh lafzo ki jazbaatin se khoob jami hai aapke blog me...

khushi said...

bahut khoob! sachh lafzo ki jazbaatin se khoob jami hai aapke blog me...

VARUN GAGNEJA said...

aapki kavita pehli baar padhi. bahut achhi lagi. vaastvikta ke saath saath chali bhavnanon ke liye aap sadhuwad ke patr hain

mridula pradhan said...

theek baat .