Sunday, April 25, 2010

क्या क्या बदल डाला ???

धरती बदल डाला ,अंबर बदल डाला ।
इस तरह हमने रहने का स्तर बदल डाला ॥

मिलकर लड़े अंग्रेजों से ,आपस में अब लड़ें ।
आजादी मिल गई तो कल्चर बदल डाला ॥

तैमूर ,गजनवी ,ब्रिटिश ,तेलगी ,मधु कोड़ा ।
सबने किये हैं वार ,बस नश्तर बदल डाला ॥

मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥

मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये ।
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ॥

पीछे पड़ी थी खाकी तो खादी पहन लिया ।
मेरे इसी कदम ने मंजर बदल डाला ॥

मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥

52 comments:

स्वप्निल तिवारी said...

Bahut sari samajik buraiyon aur aadmi ke badlte swabhav ki padtal karti rachna..behaq qamyab..wah :-)

M VERMA said...

मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
क्या बात है अब सुदामा को पूछता ही कौन है
सुन्दर रचना

सहज समाधि आश्रम said...

मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये ।
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ॥
ये बात बढिया लगी..वैसे आजकल गरीब
कोई नहीं सब मतलब के गरीब है

दिगम्बर नासवा said...

मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ...

बहुत लाजवाब शेर ... पूरी ग़ज़ल सामाजिक विषयों पर आपकी कड़ी पकड़ बतलाती है ....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

तीसरा और चौथा छंद अति सुन्दर है !

रोहित said...

bahut sundar rachna.....
aapne kavita ke madhyam se kaafi kuch keh diya....sashakt kavita!!!!

Urmi said...

बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! बड़े ही खूबसूरती से आपने वास्तविकता को प्रस्तुत किया है! लाजवाब रचना!

Neeraj Kumar said...

आपने जिस प्रकार "...बदल डाला" लिखा है, बहुत कुछ सोचने और विचारने का ख्याल आता है। सार्थक और ईमानदारी से लिखी हुई समर्थ कविता...

संजय @ मो सम कौन... said...

अजय जी,
मजा आ गया पढ़कर।

कन्हैया का घर बदलना और हमारा नंबर बदलना तो गजब ही ढा गया।

आभार।

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

अनामिका की सदायें ...... said...

vah ek se badh kar ek sher prastut kiye hai...aur buraiyo par acchha parahar kiya hai. badhiya rachna.

kshama said...

Bada sashakt vyang hai!Wah!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज कल अपनी सहूलियत के हिसाब से सभी सब कुछ बदल डालते हैं...अच्छा व्यंग है सच्चाई के साथ किया हुआ.

हर्षिता said...

अच्छा व्यंग है।

शोभना चौरे said...

sachmuch sab kuchh kitni jadi aur asani se badal dala .
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥

bilkul sahi kaha hai

ANKUR said...

अजय जी आप बहुत ही सुंदर रचनायें लिखते है। मेरी रचना पर आपके कमेन्ट के बाद मैंने आपकी प्रोफाइल तथा रचनायें संग्रह को पढ़ा । बहुत ही अच्छा लगा , धन्यवाद

Mayur Malhar said...

wah kya baat kahi hai.

शरद कोकास said...

वाह अजय ।

parveen kumar snehi said...

मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥

bahut sunder...dil ko chhoo gai panktiyaan...

Parul kanani said...

sundar panktiyaan :)

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जीवन के बदलावों को बहुत खूबसूरती से बयां किया है आपने।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

kumar zahid said...

मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥

poori rachna mein sabse asardar pankitiyan.Waqt ki tasveer ka ytharth chitran

निर्मला कपिला said...

मेरे गरीब दोस्त ने ---- अजय जी क्या कमाल की रचना लिखी है सही मे हम ने बहुत कुछ बदल डाला है। बहुत दिन बाद आयी हूँ आज कल कहीं भी नही जा पाती जून के बाद फिर सक्रिय हो पाऊँगी। शुभकामनायें

Himanshu Mohan said...

ये रचना है वो जिसमें ग़ज़ब की बात है, और वो ये कि सीधी ज़बान में सीधी बात बेहद ईमानदारी से कही गयी है। बधाई हो अजय जी!
जारी रहिए…

Pushpa Paliwal said...

kya kahu..itna sundar or itni saral bhasha me itna kuchh keh diya he apne lajawab

BrijmohanShrivastava said...

आधुनिक अमीर कन्हैया वास्तव में अपने गरीब दोस्त से नहीं मिलना चाहेगा |पहले उनसे लड़ते थे अब आपस में लड़ते है |कलयुगी सपूत ने वो पुराना घर बदल कर नया फ्लेट ले लिया और बोर्ड लगा दिया "माँ बाप का प्रवेश बर्जित है |बहुत प्यारी रचना

mridula pradhan said...

bahot sunder.

कविता रावत said...

मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥
....sundar bhavpurn maarmik chitran..
Yahi sab dekh man dravit ho uthta hai ki kahan ja rahi hai hamari sanskriti....
Bahut shubhkamnayne....

Apanatva said...

aaj kee soch ko ujagar karatee sarthak rachana.......

स्पाईसीकार्टून said...

कलयुग का सत्य

Smita Srivastava said...

What a wonderful creation . Such beautiful words , so true on todays world !!
Thanks for dropping my blog n leaving ur lovely comment .

Smita
@ Little Food Junction

shashi ranjan mishra said...

एक सच... जिसे मैं बस पढता गया |
सुन्दर अभिव्यक्ति |
पढ़ें
देश के हालात: मिसिर पुराण में
http://humbhojpuriya.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

ATULGAUR (ASHUTOSH) said...

are bhai is desh ki janta ke vichar badal dalo aapki kavita bahoot acchi hai aapko mubarak aapki kavita aur mere blog par aane ke liye

वीरेंद्र सिंह said...

Mast..................

अरुणेश मिश्र said...

जैसा देखा वैसा लिखा ।

भंगार said...

इतना अच्छा लिखते हैं आप ......जिगर तक
बात पहुँच जाती है ....हम तो आप की कलम के
कायल हो गयें

KALAAM-E-CHAUHAN said...

achhee rachna hai ...ajay sahab.....

Rathi said...

bahut ache rachna hai apke.

dipayan said...

बहुत खूब । सच को आईना दिखा दिया ।

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi badhiya va aaj ke samay ko dekhte hue behatareen vyangytmak prastuti.
poonam

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |

Tilak said...

वाह अजय, ईमानदारी से लिखी सार्थक व समर्थ कविता,सुन्दर अभिव्यक्ति| ek sanshodhan
मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥ ek to yahan'घर बदल डाला,ki punaravruti repeat hai,ambar shabd adhik jamega
हैसियत बढ़ी'ek vishal chhat'apnai.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bahut khub
badhaiyan

संजय भास्‍कर said...

अजय जी,
मजा आ गया पढ़कर।

Unknown said...

बहुत बढ़िया॥ वर्तमान परिपेक्ष्य पर व्यंगात्मक कटाक्ष है। एक-एक पंक्ति सोच कर लिखी गयी है, बाकी सभी मित्रों ने इतना कुछ कह दिया कि मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं।

Unknown said...

jo-jo badal diya hai us sabaki kimat ada karni padegi.

SATYAKAM said...

अजय बाबू, क्या गजब का लिखा हैं आपने | वास्तविकता को आपने बड़े ही खूबसूरती से जाहिर किया हैं | एक छोटी सी गुस्ताखी मैंने नीचे की हैं | इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ :
करते थे जुल्म कभी उपनिवेशक बन,
बदलते युग में अब कहर बदल डाला |

अंत में मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ जो आपने मेरे ब्लॉग पे आके मुझे कृतार्थ किया |

The Serious Comedy Show. said...

मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥

bahut badhiyaa.parsai ji ke"sudama ke chawal"yaad aa gaye.

PAWAN VIJAY said...

thaks a lot aapki rachnaaye dil ke kareeb hai.mai abhi blog ki duniya me naya hoo isliye jyada expert nahi hoo kintu bandhuvar aapki salah sar maathe par

Mukesh K. Agrawal said...

आपकी यह पंक्तियाँ, दुर्भाग्यवश आज का यह एक कटु सत्य है.....

वैसे आपकी कृतिया वास्तव में सारगर्भित हैं.....

बहुत बहुत धन्यवाद जी

Dev said...

बदलने को इस खूबसूरती से उकेरने की बधाई

खबरों की दुनियाँ said...

बनावटी जीवन जीने के अभ्यस्त लोगों को सच्चा भारत वर्ष देखना तो खोलें गठती । सहज-सरल हिन्दुस्तान देखो यारों , कहाँ जी रहे हो ।
अजय जी को साधुवाद
-आशुतोष मिश्र ,रायपुर छत्तीसगढ़