धरती बदल डाला ,अंबर बदल डाला ।
इस तरह हमने रहने का स्तर बदल डाला ॥
मिलकर लड़े अंग्रेजों से ,आपस में अब लड़ें ।
आजादी मिल गई तो कल्चर बदल डाला ॥
तैमूर ,गजनवी ,ब्रिटिश ,तेलगी ,मधु कोड़ा ।
सबने किये हैं वार ,बस नश्तर बदल डाला ॥
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये ।
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ॥
पीछे पड़ी थी खाकी तो खादी पहन लिया ।
मेरे इसी कदम ने मंजर बदल डाला ॥
मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥
194. हिंद स्वराज-6
9 hours ago
52 comments:
Bahut sari samajik buraiyon aur aadmi ke badlte swabhav ki padtal karti rachna..behaq qamyab..wah :-)
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
क्या बात है अब सुदामा को पूछता ही कौन है
सुन्दर रचना
मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये ।
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ॥
ये बात बढिया लगी..वैसे आजकल गरीब
कोई नहीं सब मतलब के गरीब है
मेरे गरीब दोस्त ने कुछ फोन क्या किये
चुपचाप मैंने अपना वो नंबर बदल डाला ...
बहुत लाजवाब शेर ... पूरी ग़ज़ल सामाजिक विषयों पर आपकी कड़ी पकड़ बतलाती है ....
तीसरा और चौथा छंद अति सुन्दर है !
bahut sundar rachna.....
aapne kavita ke madhyam se kaafi kuch keh diya....sashakt kavita!!!!
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! बड़े ही खूबसूरती से आपने वास्तविकता को प्रस्तुत किया है! लाजवाब रचना!
आपने जिस प्रकार "...बदल डाला" लिखा है, बहुत कुछ सोचने और विचारने का ख्याल आता है। सार्थक और ईमानदारी से लिखी हुई समर्थ कविता...
अजय जी,
मजा आ गया पढ़कर।
कन्हैया का घर बदलना और हमारा नंबर बदलना तो गजब ही ढा गया।
आभार।
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
vah ek se badh kar ek sher prastut kiye hai...aur buraiyo par acchha parahar kiya hai. badhiya rachna.
Bada sashakt vyang hai!Wah!
आज कल अपनी सहूलियत के हिसाब से सभी सब कुछ बदल डालते हैं...अच्छा व्यंग है सच्चाई के साथ किया हुआ.
अच्छा व्यंग है।
sachmuch sab kuchh kitni jadi aur asani se badal dala .
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
bilkul sahi kaha hai
अजय जी आप बहुत ही सुंदर रचनायें लिखते है। मेरी रचना पर आपके कमेन्ट के बाद मैंने आपकी प्रोफाइल तथा रचनायें संग्रह को पढ़ा । बहुत ही अच्छा लगा , धन्यवाद
wah kya baat kahi hai.
वाह अजय ।
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
bahut sunder...dil ko chhoo gai panktiyaan...
sundar panktiyaan :)
जीवन के बदलावों को बहुत खूबसूरती से बयां किया है आपने।
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गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥
poori rachna mein sabse asardar pankitiyan.Waqt ki tasveer ka ytharth chitran
मेरे गरीब दोस्त ने ---- अजय जी क्या कमाल की रचना लिखी है सही मे हम ने बहुत कुछ बदल डाला है। बहुत दिन बाद आयी हूँ आज कल कहीं भी नही जा पाती जून के बाद फिर सक्रिय हो पाऊँगी। शुभकामनायें
ये रचना है वो जिसमें ग़ज़ब की बात है, और वो ये कि सीधी ज़बान में सीधी बात बेहद ईमानदारी से कही गयी है। बधाई हो अजय जी!
जारी रहिए…
kya kahu..itna sundar or itni saral bhasha me itna kuchh keh diya he apne lajawab
आधुनिक अमीर कन्हैया वास्तव में अपने गरीब दोस्त से नहीं मिलना चाहेगा |पहले उनसे लड़ते थे अब आपस में लड़ते है |कलयुगी सपूत ने वो पुराना घर बदल कर नया फ्लेट ले लिया और बोर्ड लगा दिया "माँ बाप का प्रवेश बर्जित है |बहुत प्यारी रचना
bahot sunder.
मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥
....sundar bhavpurn maarmik chitran..
Yahi sab dekh man dravit ho uthta hai ki kahan ja rahi hai hamari sanskriti....
Bahut shubhkamnayne....
aaj kee soch ko ujagar karatee sarthak rachana.......
कलयुग का सत्य
What a wonderful creation . Such beautiful words , so true on todays world !!
Thanks for dropping my blog n leaving ur lovely comment .
Smita
@ Little Food Junction
एक सच... जिसे मैं बस पढता गया |
सुन्दर अभिव्यक्ति |
पढ़ें
देश के हालात: मिसिर पुराण में
http://humbhojpuriya.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
are bhai is desh ki janta ke vichar badal dalo aapki kavita bahoot acchi hai aapko mubarak aapki kavita aur mere blog par aane ke liye
Mast..................
जैसा देखा वैसा लिखा ।
इतना अच्छा लिखते हैं आप ......जिगर तक
बात पहुँच जाती है ....हम तो आप की कलम के
कायल हो गयें
achhee rachna hai ...ajay sahab.....
bahut ache rachna hai apke.
बहुत खूब । सच को आईना दिखा दिया ।
bahut hi badhiya va aaj ke samay ko dekhte hue behatareen vyangytmak prastuti.
poonam
बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |
वाह अजय, ईमानदारी से लिखी सार्थक व समर्थ कविता,सुन्दर अभिव्यक्ति| ek sanshodhan
मां-बाप छोटे हो गये जब हैसियत बढ़ी ।
तब कलयुगी सपूत ने वो घर बदल डाला ॥ ek to yahan'घर बदल डाला,ki punaravruti repeat hai,ambar shabd adhik jamega
हैसियत बढ़ी'ek vishal chhat'apnai.
bahut khub
badhaiyan
अजय जी,
मजा आ गया पढ़कर।
बहुत बढ़िया॥ वर्तमान परिपेक्ष्य पर व्यंगात्मक कटाक्ष है। एक-एक पंक्ति सोच कर लिखी गयी है, बाकी सभी मित्रों ने इतना कुछ कह दिया कि मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं।
jo-jo badal diya hai us sabaki kimat ada karni padegi.
अजय बाबू, क्या गजब का लिखा हैं आपने | वास्तविकता को आपने बड़े ही खूबसूरती से जाहिर किया हैं | एक छोटी सी गुस्ताखी मैंने नीचे की हैं | इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ :
करते थे जुल्म कभी उपनिवेशक बन,
बदलते युग में अब कहर बदल डाला |
अंत में मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ जो आपने मेरे ब्लॉग पे आके मुझे कृतार्थ किया |
मिलने गया सुदामा ,मुलाकात न हुई ।
सुनते हैं कन्हैया ने वो घर बदल डाला ॥
bahut badhiyaa.parsai ji ke"sudama ke chawal"yaad aa gaye.
thaks a lot aapki rachnaaye dil ke kareeb hai.mai abhi blog ki duniya me naya hoo isliye jyada expert nahi hoo kintu bandhuvar aapki salah sar maathe par
आपकी यह पंक्तियाँ, दुर्भाग्यवश आज का यह एक कटु सत्य है.....
वैसे आपकी कृतिया वास्तव में सारगर्भित हैं.....
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बदलने को इस खूबसूरती से उकेरने की बधाई
बनावटी जीवन जीने के अभ्यस्त लोगों को सच्चा भारत वर्ष देखना तो खोलें गठती । सहज-सरल हिन्दुस्तान देखो यारों , कहाँ जी रहे हो ।
अजय जी को साधुवाद
-आशुतोष मिश्र ,रायपुर छत्तीसगढ़
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